27 नवंबर अंगदान दिवस पर विशेष-
8 वर्ष पूर्व साहित्यकार दंपति दे चुके हैं बीएचयू वाराणसी को अंगदान. नेत्रदान।
अंगदान महादान है -दीपक कुमार केसरवानी
- अंगदान और नेत्रदान के लिए प्रचार- प्रसार की जरूरत है।
- प्रत्येक जनपद में होनी चाहिए अंगदान एवं नेत्रदान की व्यवस्था।
सोनभद्र। अंगदान महादान है, प्रत्येक धर्म जाति के लोगों को इस महायज्ञ में आहुति डालनी चाहिए। अंगदान की प्राचीन परंपरा रही है महर्षि दधिची ने देवताओं की असुरों से रक्षा के लिए अपने तप के बल पर प्राण त्याग दिया और अपनी अस्थियां देवताओं को बज्र बनाने के लिए दान दे दिया था। इसी बज्र से देवताओं ने दानवो पर विजय प्राप्त किया। यह प्राचीन अंगदान की कहानी आज के वर्तमान वैज्ञानिक युग में सार्थक है ।
मानव चिकित्सा विज्ञान अंग प्रत्यारोपण के माध्यम से लोगों को जीवनदान प्रदान कर रही है।
27 नवंबर को भारतीय अंगदान दिवस के अवसर पर जनपद मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज के निवासी रामायण कल्चर मैपिंग योजना के डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर, संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश के नामित सदस्य /इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी इनकी पत्नी वरिष्ठ साहित्यकार एवं आदिवासी लोककला केंद्र उत्तर प्रदेश की सचिव प्रतिभा देवी ने संयुक्त रूप से बताया कि-" 1 नवंबर 2014 को बीएचयू वाराणसी के मानव विज्ञान संस्थान में देहदान एवं आरएम नेत्र बैंक इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनारस शाखा को नेत्रदान कर चुके हैं। मेरा अंगदान पंजीकरण संख्या -1, नेत्रदान पंजीकरण संख्या 1168, प्रतिभा देवी का अंगदान पंजीकरण संख्या- 2, नेत्रदान पंजीकरण संख्या 1169 है।
अंगदानी दंपति ने भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार से यह मांग किया कि-"27 नवंबर (भारतीय अंगदान दिवस) के अवसर पर प्रत्येक जनपद में ब्लॉक एवं तहसील जिला स्तर पर संगोष्ठी, सम्मान आदि कार्यक्रमों का आयोजन कर अंगदान एवं नेत्रदान के प्रचार- प्रसार का कार्य, अंगदान नेत्रदान के संकल्प पत्र के भरे जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोग इस योजना से जुड़ कर अंगदान एवं नेत्रदान का संकल्प लेकर समाज सेवा कर सके। साथ ही साथ अंगदान एवं नेत्रदान दे चुके महादानियों को निशुल्क चिकित्सा, यात्रा की सुविधा प्रदान की जाए।
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