हर्षोल्लास के साथ बनाया गया दशहरा का पर्व
सोनभद्र नगर में दशहरा का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया स्थानीय रामलीला मैदान में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा दशानन का वध, लंकापति रावण के पुतला दहन एवं भगवान श्री राम की आरती, भरत मिलाप, भगवान राम माता सीता, अनुज लक्ष्मण का अयोध्या लौटना, श्री राम का राज्याभिषेक आदि लीला का मंचन मांडा इलाहाबाद से आए हुए रामलीला के कलाकारों द्वारा किया गया इसके साथ नगर के उत्तर मोहाल में स्थानीय युवाओं द्वारा रावण वध एवं पुतले का दहन किया गया सोनभद्र नगर का उत्तर मुहाल सांस्कृतिक धार्मिक स्थलों की अधिकता के कारण सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गढ़ माना जाता था और नगर के संभ्रांत नागरिक, पत्रकार, साहित्यकार इस क्षेत्र में निवास करते थे, लाग निकालने की परंपरा का शुभारंभ मिर्जापुर जनपद के निवासी स्वर्गीय रामसूरत ठेकेदार द्वारा किया गया था।
उस समय मनोरंजन का साधन रामलीला था और पितृ पक्ष से ही रामलीला का शुभारंभ हो जाता था और रामलीला मैदान में लीला प्रेमियों की भारी संख्या में जुटती थी और लीला का आनंद लेते थे।
विजया दशमी के दूसरे दिन मुख्य चौराहे पर भरत मिलाप का आयोजन होता था इसी दिन नगर में उत्तर मोहाल से लाग निकाला जाता था और यह आकर्षक, आश्चर्यजनक झांकी की सजावट, लाग का निर्माण नगर के सधधू मिस्त्री, माता प्रसाद, जवाहिर सेठ, इत्यादि द्वारा किया जाता था और यह लाग पूरे नगर में भ्रमण करता था ।
आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व जरनेटर इत्यादि की व्यवस्था नहीं थी लोग ठेलें, सगड़ी आदि पर लाग निकालते थे और लाग पर रोशनी के लिए में बिजली के तार लोगों के घरों में लगाए जाते थे तब कहीं जाकर लाग में रोशनी होती थी और लोग लाग का आनंद लेते थे।
तत्पश्चात रामलीला कमेटी द्वारा लाग के आयोजन में प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले लोगों को सम्मानित और पुरस्कृत किया जाता था। दुर्गा पूजा के प्रारंभ होने के पश्चात दुर्गा पूजा पांडाल एवं मूर्ति के सजावट के लिए भी समिति के पदाधिकारियों को पुरस्कृत एवं सम्मानित करने की परंपरा कायम थी।
भरत मिलाप के पश्चात रामराज्य के साथ-साथ रामलीला का समापन होता था और रामलीला के कलाकारों द्वारा भक्त पूरणमल, राजा भरथरी, शीत बसंत, सुल्ताना डाकू, कफन आदि नाटक का मंचन रामलीला के कलाकारों द्वारा किया जाता था और रामलीला समिति के संरक्षक जितेंद्र सिंह द्वारा भी आकर्षक अभिनय किया जाता था।
दशहरा के अवसर पर तेलहिया जलेबी यहां के निवासियों का द्वारा खरीदा और खाया जाता है दशहरा के मेले का मुख्य आकर्षण रावण वध के पश्चात रामलीला मैदान के आसपास लगने वाले मेले में मिट्टी के आकर्षक खिलौने, गैस वाले गुब्बारे, फिरंगी, बाजा, खिलौने आदि बच्चों के आकर्षण का मुख्य केंद्र होते हैं और लोग अपने बच्चों को खुशी-खुशी इन खिलौनों को दिलाते।
नवरात्र से लेकर दशहरा तक सोनभद्र नगर में श्रद्धालु की काफी भीड़भाड़ रहती है और एकादशी को दुर्गा पंडालों में स्थापित मां दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन स्थानीय तालाबों, पोखरो नदियों में किया जाता है इस प्रकार 10 दिवसीय चलने वाले इस पर्व का समापन होता है। और मां दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन वाले दिन दुर्गा पंडालों में विभिन्न प्रकार के साहित्यिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन पांडाल समितियों द्वारा आयोजित कराया जाता है।
COMMENTS