त्याग- तपस्या की प्रतिमूर्ति थे बलराम दास केसरवानी

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     त्याग- तपस्या की प्रतिमूर्ति थे बलराम दास केसरवानी


आजादी के 75 साल बाद भी प्रस्तर स्तंभ से नदारत है इस सेनानी का नाम


 पराधीनता काल में रॉबर्ट्सगंज  नगर का नाम बदलने के लिए चलाया था आंदोलन


चाचा नेहरू पार्क में आजमगढ़ की प्रतिमा की स्थापना गौरव स्तंभ पर नाम अंकित  करायै जाने की मांग


वाराणसी दूरदर्शन द्वारा फिल्म का निर्माण किया जा चुका है।


सोनभद्र-पीढिया याद करती रहेंगी तेरे कारनामे को,हम दिखा देंगे सारे जमाने को

 कविता की यह चंद लाइने आजाद भारत के रॉबर्ट्सगंज टाउन एरिया के प्रथम चेयरमैन, सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी, देशभक्त, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाजसेवी, बलराम दास केसरवानी के लिए सटीक बैठती है। सोनभद्र जनपद के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रथम पंक्ति में दर्ज इस सेनानी का क्रांतिकारी विवरण उत्तर प्रदेश शासन द्वारा प्रकाशित स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का संक्षिप्त परिचय, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रो0 विश्राम सिंह द्वारा लिखित मिर्जापुर के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास सहित अन्य पुस्तकों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

आजादी के 75 वर्षों बाद पूरे देश में आजादी का अमृत महोत्सव बड़े भव्यता के साथ मनाया गया और सोनभद्र जनपद में तिरंगा यात्रा, संगोष्ठी, जुलूस, आदि के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद किया गया। शासन- प्रशासन द्वारा इन सेनानियों के त्याग, तपस्या, बलिदान को अक्षुण बनाएं रखने के लिए अनेक घोषणाएं की गई, जिनमें बलराम दास केसरवानी के नाम पर सोनभद्र बस डिपो का नामकरण किये जाने का प्रस्ताव भी उत्तर पर सरकार को भेजा गया। लेकिन इसके बावजूद अभी तक यह कार्य पूरा नहीं हो सका। इस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाम पर आजादी के 75 साल बाद भी कोई द्वार,स्मारक, किसी भी संस्थान का नामकरण नहीं किया गया। आश्चर्य तो तब होता है जब नगर पालिका परिषद द्वारा निर्मित नेहरू पार्क में लगे गौरव स्तंभ पर रॉबर्ट्सगंज ब्लॉक के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सूची में इस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का नाम दर्ज नहीं है।

ऐतिहासिक, पुरातात्विक, स्थलों के संरक्षण, संवर्धन, पर्यटन विकास के क्षेत्र में अनावरत ढाई दशकों से कार्यरत विंध्य संस्कृति शोध समिति उत्तर प्रदेश ट्रस्ट के निदेशक/ इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी द्वारा  पत्र के माध्यम से सूबे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का ध्यान इस प्रकरण की ओर आकृष्ट कराया जा चुका है, बावजूद इसके अभी तक इस महान सेनानी का नाम इस प्रस्तर स्तंभ पर अंकित नहीं हुआ।

ट्रस्ट द्वारा प्रकाशनाधीन कृति सोनभद्र नगर का इतिहास नामक पुस्तक के अनुसार-"क्रांतिकारी बलराम दास केसरवानी का जन्म 5 दिसम्बर 1902 ई. जनपद- मीरजापुर के  दारानगर वर्तमान मड़िहान तहसील के अंतर्गत हुआ था। इनके पिता रघुनाथ साव

माता रमजानी देवी थी।

लोकवार्ता शोध संस्थान के संस्थापक एवं लोक साहित्यकार डॉ अर्जुन दास के बताते हैं कि-"स्वर्गीय बलराम दास केसरवानी मेरे रिश्ते में मामा लगते थे। सन् 1830 ई. में मीरजापुर जनपद की स्थापना का उद्देश्य सरकार द्वारा अधिक से अधिक राजस्व की वसूली करना था। दारानगर के जमीदार शिवदास साव सीधे-सादे दयालु सज्जन प्रकृति के थे। इसलिए वे अपने मातहतों के माध्यम से कृषको से राजस्व की वसूली नही कर पाते थे और समय से लगान खजाने में जमा कर पाते थे। एक बार कुछ ब्रिटिश पुलिस शिवदास साव को गिरफ्तार करने पहुंची लेकिन गांव वालो के विरोध के कारण ब्रिटिश पुलिस भले गिरफ्तार नही कर पाई लेकिन वे  ब्रिटिश प्रशासन की आंखो की किरकिरी बने हुए थे, पुलिस आये दिन प्रताड़ित करती, जिला प्रशासन समय से राजस्व जमा न कर पाने का आरोप लगाते हुए इनकी पांच गांवो की जमीनदारी (1600 बीघा) भूमि, आवास, दुकान, आढत, गाय- बैल को जब्त कर दारानगर से  निष्कासित कर दिया, गांव मे मुनादी करा दिया कि जो कोई जमीनदार शिवदास साव को पनाह देगा उसे कड़ी सजा दी जायेगी। निर्वासित जमीनदार शिवदास साव अपने पुत्र लक्ष्मी नारायण रघुनाथ साव, बद्रीनारायण साव सहित घर की स्त्रियों और बच्चो के साथ राबर्ट्सगंज (वर्तमान सोनभद्र जनपद का मुख्यालय के मुख्य चौराहा के दक्षिणी छोर पर झोपड़ी बनाकर रहने लगे।

  गुमनामी का जीवन जीते हुए इस परिवार ने पुन: आर्थिक समृद्धि हासिल किया और ब्रिटिश साम्राज्य से मुकाबले के लिए सन् 1918 में मीरजापुर मुख्यालय में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। मीरजापुर जनपद की जिम्मेदारी बद्रीनारायण को मिली और वर्तमान सोनभद्र में स्वाधीनता आन्दोलन की नीव पड़ी। और बद्रीनारायण जी ने अपना निजी आवास कांग्रेस कमेटी के कार्यालय के लिए दान दे दिया। 

  स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री राम के पुत्र सोहनलाल केसरी के अनुसार-" बाबूजी बताते थे कि ब्रिटिश हुकुमत की प्रताड़ना पैतृक गांव से पलायन, पारिवारिक संघर्ष ने बालक बलराम दास के कोमल मन- मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला, परिवार से ब्रिटिश हुकुमत से लोहा लेने, भारत माता को विदेशी दासता से मुक्ति, निरन्तर प्रेरणा के कारण वे देश- सेवा के लिए  संकल्पित हो चुके थे, किशोरावस्था से ही कांग्रेस कमेटी की बैठको से भाग लेते रहे।

  सन् 1921 में महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन के नीतियों के अर्न्तगत सरकारी स्कूलो, कालेजो, कौसिल, अदालतो, विदेशी कपड़ो, वस्तुओं का बहिष्कार, मादक द्रव्य निषेध, पिकेटिंग, उपाधि का त्याग, स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार, 

राष्ट्रीय कालेजों की स्थापना, तिलक स्वराज्य फण्ड में चंदा एकत्रित करना, कांग्रेस का सदस्य बनाना आदि कार्यक्रमो के प्रचार-प्रसार के लिए अपने कान्तिकारी साथियो के सहयोग से राबर्ट्सगंज नगर में आन्दोलन  चलाया। तत्पश्चात् मीरजापुर के बाबू पुरुषोत्तम सिंह, बेनी माधव पाण्डेय के साथ पदयात्रा कर स्थानीय कार्यकर्ता यूसुफ मसीह, रामानन्द पाण्डेय, सुखन अली, सैय्यद सखावत हुसैन के साथ मिलकर दुद्धी से लेकर सिंगरौली तक विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, स्वदेशी वस्तुओ का प्रचार-प्रसार, लगानबंदी, नशाबन्दी आदि कार्यक्रम मूर्त रूप दिया।

 तहसील राबर्टसगंज के बरहदा गांव के गौरीशंकर मंदिर के प्रांगण में शिवरात्रि के दिन विदेशी वस्तुओं की होली जलाई गई, कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों के चुनाव में युवा बलराम दास केसरवानी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

  सन् 1925 ई. में आपके सदप्रयासो से राज्य सरकार, जिला परिषद एवं स्थानीय सहायता से राबर्ट्सगंज संस्कृत विद्यालय की स्थापना हुई। यह विद्यालय कान्तिकारियो के गुप्त मंत्रणा, छिपने का स्थान था। क्रांन्तिकारी बलराम दास देशभक्तो के खाने-पीने, आराम व धन की व्यवस्था करते थे। 

 स्वतंत्रता आन्दोलन को सुदृढ बनाने और व्यापक प्रचार- प्रसार हेतु  बलराम दास ने युवा शिव शंकर प्रसाद केसरवानी, चन्द्रशेखर वैद्य के सहयोग से एक टीम गठित किया। इस टीम के नेतृत्व में राबर्ट्सगंज नगर मे एक शिविर चलता था इस आवासीय शिविर में सामूहिक रूप से स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेते थे और प्रतिदिन नगर में स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रचार-प्रसार करते थे।

 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं टाउन एरिया रॉबर्ट्सगंज के उपाध्यक्ष मोहनलाल गुप्ता ने एक साक्षात्कार में बताया था कि-" सविनय अवज्ञा(1930) आन्दोलन के लिए दुद्धी तहसील और राबर्ट्सगंज तहसील में एक-एक युद्ध समिति बनायी गयी।

  सर्वप्रथम बलराम दास के नेतृत्व में राबर्ट्सगंज नगर के मुख्य चौराहे पर बन्देमातरम् भारत माता के जयघोष के साथ नमक बनाकर नमक कानून को भंग किया गया और नमक की पुड़िया को नागरिको ने स्वदेशी वस्तु के नाम पर ज्यादा कीमत देकर खरीदा। कालान्तर में राबर्टसगंज तहसील के अन्य कस्बो में आपके नेतृत्व में नमक कानून को तोड़ा गया। इस जुर्म मे आपको एक वर्ष की कड़ी कैद की सजा मिली। युवा बलराम दास जेल में बन्द होने के बाद सविनय अवज्ञा आन्दोलन को गति देते रहे। देश के शिर्षस्थ नेताओ से संपर्क होने, लोकप्रिय होने के बावजूद ब्रिटिश हुकुमत ने इनके परिजनो को प्रताड़ित व्यापार को हानि पहुचाती रही।

 23 मार्च 1931ई. को अंगेजो द्वारा सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के फांसी के विरोध में बलराम दास के नेतृत्व में काला झण्डा लेकर जुलूस निकाला गया और दुकाने बन्द रही।

  सन् 1932 में राबर्ट्सगंज नगर में युवा क्रांतिकारी बलराम दास को सारगर्भित भाषण हुआ, और जनता से लगान न देने की अपील की गयी। सन् 1937 ई. के कौसिल के चुनाव के बाद इनके प्रयासों, सहयोग से राबर्ट्सगंज नगर के कंपनी बाग में तृतीय जिला राजनैतिक सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में उस समय के लोकप्रिय नेता पं. जवाहर नेहरूऊ सहित अन्य दिग्गज नेताओ का भाषण हुआ और स्वाधीनता आन्दोलन से काफी संख्या में देशभक्त जुड़े।

राबर्ट्सगंज गुलामी के प्रतीक इस नाम को बदलने के लिए क्रांन्तिकारी बलराम दास के संयोजकत्व में मीरजापुर में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में सीताराम द्विवेदी सवन्मयी द्वारा राबर्ट्सगंज का नाम चुर्क, वीर कुंवर सिंह नगर रखने का प्रस्ताव पारित हुआ। 

सन् 1938-1940 तक बलराम दास केसरवानी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन दुद्धी और राबर्ट्सगंज तहसील में चलता रहा। 

सन् 1940 ई. मे मीरजापुर जनपद का पांचवा जिला राजनैतिक सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि आजाद हिन्द फौज के संस्थापक सुभाष चन्द्र बोस थे। इस सम्मेलन में क्रान्तिकारी बलराम दास सम्मिलित हुए थे और ब्रिटिश प्रताड़ना मुक्ति के लिए एक ज्ञापन दिया था। इसी वर्ष बलराम दास के नेतृत्व में क्रांतिकारी चन्द्रशेखर वैद्य, शिव शंकर प्रसाद केसरवानी, अली हुसैन उर्फ बेचू, मोहन लाल गुप्ता द्वारा सरकार के खिलाफ सार्वजनिक स्थानों, सरकारी कार्यालयों पर‌ लाल पर्चा चिपकाया गया था।

  सन् 1941 ई. में व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन मीरजापुर के दक्षिणांचल (वर्तमान सोनभद्र जनपद) में जोरों पर था। मीरजापुर के गांधी कहे जाने वाले पं० महादेव प्रसाद चौबे को राबर्ट्सगंज के दरोगा पुरुषोत्तम सिंह द्वारा न केवल गिरफ्तार किया गया बल्कि उनके घर जायजाद को कुर्क और नीलाम कर दिया गया। जिसका विरोध निर्भिकता और निडरतापूर्वक बलराम दास ने किया जिसके कारण उन्हें पुलिस प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा। चौबे जी जब जेल से छूटकर आये तब उन्होंने 18 अप्रैल 1941 को राबर्ट्सगंज चौराहा पर समारोह पूर्वक उनका तिलक लगाकर माल्यार्पण किया और शिवशंकर प्रसाद केसरवानी द्वारा तैयार मान पत्र प्रदान कर ब्रिटिश साम्राराज्य को आईना दिखाया और भारत माता का जयकारा लगाते हुए गिरफ्तार हुए। जिला प्रशासन द्वारा सरकार के खिलाफ षडयन्त्र रचने, जनता को बरगलाने के जुर्म में 1 वर्ष की नजरबंदी की सजा हुई। 

 सन् 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन अंग्रेज सरकार के दमनकारी रवैया के कारण अहिंसक हो गया और मीरजापुर जनपद के अहरौरा नगर में 13 अगस्त 1942 को गोली लगने से दो आन्दोलनकारी शहीद हो गये और कई आन्दोलन कारी घायल हो गये। इस गोलीकाण्ड में अहरौरा में इनके रिश्तेदार वृन्दा प्रसाद, जगरनाथ प्रसाद, बद्री प्रसाद 'आजाद' गौरीशंकर, श्री राम, ज्वाला प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया। सरकार के खिलाप षडयन्त्र रचने मे राबर्ट्सगंज से भारत प्रतिरक्षा भारत के धारा 26 के अन्तर्गत 4 महीने के लिए नजर बन्द कर दिया गया।

 जेल से छूटने के बाद अहूतोद्वार कार्यक्रम के अर्न्तगत संस्कृत पाठशाला में मोलई हरिजन के साथ पंक्ति में बैठकर भोजन ग्रहण किया था। 

सन् 1942-46 का दौर शान्तिपूर्ण रहा स्वाधीनता के लिए प्रयास जारी था। 14 अगस्त 1947 को देश, विभाजन की शर्त पर आजादी प्राप्त हुई।

 नगर पालिका परिषद रॉबर्ट्सगंजके पूर्व अध्यक्ष साहित्यकार अजय शेखर के अनुसार-"स्वतंत्रता प्राप्ति  एवं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा ध्वजारोहण की खबर राबर्ट्सगंज के निवासियों ने रेडियो पर सुनी रात में पटाखा फोड़कर, मिठाईया बाटकर जश्न मनाया गया।

 सवेरे 15 अगस्त बलराम बास केसरवानी के नेतृत्व में कांग्रेस कमेटी कार्यालय से एक भव्य जुलूस निकाला गया जो नगर भ्रमण करते हुए कंपनी बाग पहुंचा जहां पर बलराम दास केसरवानी ने ध्वजारोहण किया और उपस्थित आन्दोलनकारी शिवशंकर प्रसाद केसरवानी, चंद्रशेखर वैद्य, अली हुसैन उर्फ बेचू, मोहन लाल गुप्त सहित अन्य लोगो ने एक उच्च शिक्षण संस्थान की स्थापना का संकल्प दुहराया और उसी दिन मिडिल स्कूल को दो कमरा किराये पर लेकर कक्षा-9 की कक्षा आरम्भ कराया गया और मौला बख्स को प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया। (आज यही शिक्षण संस्थान राजा शारदा महेश इंटर कॉलेज के नाम से संचालित है।) तत्पश्चात सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया एवं नगर को दीपक से सजाया गया।

  सन् 1948 ई. में हुए टाउन ऐरिया चुनाव मे राबर्ट्सगंज  की जनता ने चेयरमैन चुना। इनके कार्यकाल में नगर की सफाई व प्रकाश व्यवस्था आजादी के बाद सुनिश्चित हुई, आजाद भारत के राबर्ट्सगंज टाउन एरिया के प्रथम चेयरमैन का कार्यकाल 5 वर्षों रहा। 

स्वाधीनता के बाद इन्होंने कोई सरकारी सहायता, पद स्वीकार नही किया आजादी के बाद देश की राजनीति में आये परिवर्तन के कारण इन्होंने राजनैतिक सन्यास ले लिया। 

 क्रांतिकारी बलराम दास केसरवानी की पौत्र वधू राधा रानी बताती है कि-"

देश सेवा समाज सेवा करते हुए 13 अप्रैल 1967 को अपने नीजी आवास पर स्वतंत्रता के इस पुजारी ने अंतिम सांस लिया। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में वाराणसी दूरदर्शन केंद्र द्वारा सेनानी बलराम दास केसरवानी जीवन पर एक फिल्म का निर्माण किया जा चुका है।

  वर्तमान राजा शारदा महेश इंटर कॉलेज की स्थापना, विकास, नगर के निवासियों की सुविधा के लिए तालाब, पोखरा, धर्मशाला मूक छविगृह, धर्मशाला आदि का निर्माण करने वाले बलराम दास केसरवानी का नाम भले ही इतिहास के  स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हो लेकिन प्रत्यक्ष रूप से कुछ प्रदर्शित नहीं होता।

 स्थानीय निवासियों ने उत्तर प्रदेश सरकार से यह मांग किया कि चाचा नेहरू पार्क में क्रांतिकारी बलराम दास केसरवानी की आदमकद की प्रतिमा की स्थापना, प्रस्तर स्तंभ पर बलराम दास केसरवानी सहित मिर्जापुर के गांधी कहे जाने वाले पंडित महादेव चौबे, चंद्रशेखर वैद्य, अली हुसैन उर्फ बेचू का नाम दर्ज कराते हुए, पूर्व में शासन में विचाराधीन सोनभद्र बस डिपो का नामकरण क्रांतिकारी बलराम दास केसरवानी के नाम पर करते हुए, नगर के धर्मशाला चौराहा पर एक प्रवेश द्वार एवं सड़क का नामकरण कराया जाए यही आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में सेनानी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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त्याग- तपस्या की प्रतिमूर्ति थे बलराम दास केसरवानी
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