सोनभद्र में एक और गुफा चित्र की हुई खोज
- नगवा ब्लॉक के पनौरा गांव तलवा बांध के पास स्थित है नवीन गुफा चित्र।
- पोस्ट डॉक्टरल फ़ेलो डॉ मुकेश कुमार ने पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान यह खोज किया।
-आदिकालीन गुफाचित्रों का संरक्षण होना चाहिए -दीपक कुमार केसरवानी
-विंध्य संस्कृति शोध समिति उत्तर प्रदेश ट्रस्ट द्वारा खोज अभियान चलाया जा चुका है।
सोनभद्र। आदिमानव की क्रीड़ा स्थली विंध्य क्षेत्र का सोनभद्र जनपद जहां विश्व में पहली बार सन 1867-68 में पुरातत्व विभाग के सर्वेयर अलेजजेंडर कनिंघम के सहायक एसीएल कारनाईल विश्व में प्रथम बार गुफाचित्रों का श्री गणेश सोनभद्र जनपद के सोहागी घाट से किया था, लगभग 140 वर्ष पूर्व। तब से लेकर आज तक सोनभद्र जनपद में नवीन गुफा चित्रों की खोज पुरातत्ववेत्ताओ, शोधार्थियों द्वारा अनवरत की जा रही है इसी क्रम में सोनभद्र जनपद के नगवा गांव के पनौरा गांव के तलवा बांध स्थित एक पहाड़ी पर मुसरहवा मान मे एक नवीन गुफा चित्र की खोज वाराणसी बीएचयू के पोस्ट डॉक्टरल फ़ेलो डॉ मुकेश कुमार ने किया है। खोजकर्ता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ विनोद कुमार जायसवाल के निर्देशन शोध कर रहे है।
खोजकर्ता ने बताया कि-"खोज में प्राप्त गुफा की पदीवार पर गाढ़े भूरे और लाल रंग से विविध चित्र बने है जिसमे गाढ़े भूरे रंग से चित्रित मानव द्वारा धनुष बाण से हिरण (संभवतः सांभर) का आखेट करने के दृश्य के ऊपर लाल रंग से बने हिरण, जंगली सूअर, भैंसा तथा अन्य पशु का चित्र काफी आकर्षक है| लाल रंग से बने हिरण के कुछ चित्रों में पीले रंग से पशु की वाह्य रूपरेखा बनायीं गई है | एक अन्य दृश्य में लाल रंग से चित्रित मानवों द्वारा धनुष बाण एवं भाले से हाथी का आखेट करने का चित्र भी महत्वपूर्ण है| इसमें नीचे की तरफ एक दूसरे का हाथ पकड़े व पैर फैलाये मानवाकृतियों की लम्बी श्रृंखला है जो संभवतः हाथी को घेरकर मारने का दृश्य हो सकता है| हाथी की लम्बाई ५० सेमी० है था तथा इसके समीप बने दो अन्य हिरण की लम्बाई क्रमशः 27व 23 सेमी० है | इस चित्र के ऊपर गाढ़े भूरे रंग से बने हिरण, मोर तथा अन्य पशु पक्षी के चित्र निष्पादित किये गए है। इसके अतिरिक्त अन्य पशु आखेट का दृश्य, सामूहिक नृत्य का दृश्य, एक दिशा में जाते हिरणों के चित्र, आखेट करने के लिए एक पंक्ति में जाते मानवाकृतियाँ जिसमे किंही किंही के हाथ भाले है, आदि चित्र अंकित है। इन चित्रों की कनच तार, लेखहिया, लेखनिया, लखमा, भल्दरिया तथा भीम बैठका आदि चित्रित शैलाश्रयों के चित्रों से तुलना करने के बाद कहा जा सकता है इस शैलाश्रय में अंकित चित्र मध्यपाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक का प्रतिनिधित्व करते हैं |
पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, प्राकृतिक, स्थलों के संरक्षण, संवर्धन, पर्यटन विकास के क्षेत्र में अनवरत रूप से कार्यरत विंध्य संस्कृति शोध समिति उत्तर प्रदेश ट्रस्ट के निदेशक/ पुरातत्वविद दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार-विंध्य क्षेत्र के सोनभद्र जनपद में अब तक 10,000 ईसवी पूर्व से 500 ईसवी पूर्व तक के आदिम गुफाचित्र प्रकाश में आ चुके हैं। इनमें शिकार दृश्य, पारिवारिक दृश्य, युद्ध दृश्य, पशु- पक्षी आकृतियां, विभिन्न प्रकार की लिपियां ज्यामिति डिजाइन एवं बौद्ध, जैन धर्म से संबंधित चिन्ह अन्य धार्मिक चिन्ह प्राप्त हुए हैं। इनआदिकालीन गुफा चित्रों का संरक्षण होना चाहिए।
इस संबंध में मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश शासन, उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभा, लखनऊ, जिला अधिकारी सोनभद्र को पत्र प्रेषित कर यह मांग किया है कि सोनभद्र जनपद में विभागीय स्तर से गुफाचित्रों का सर्वेक्षण इनके संरक्षण की व्यवस्था तत्काल कराई जाए ताकि इनका चित्रात्मक इतिहास कायम रहे।
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