माँ शक्ति भिन्न-भिन्न नामों एवम् रूपों में अपने भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करती हैं |

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म०प्र० के कटनी जनपदान्तर्गत बरही में श्री दुर्गा प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पधारे श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज के पावन सानिध्य में प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुआ | इस अवसर पर उपस्थित सनातन धर्मावलम्बियों को अपना आशीर्वचन प्रदान करते हुए पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य भगवान ने कहा कि माँ शक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं, जिन्हें देवी, शक्ति और पार्वती,जग्दम्बा और आदि नामों से भी जाना जाता हैं । 

शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं, जिनकी तुलना परम ब्रह्म से की जाती है। माँ दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती योगमाया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित हैं। वह अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली तथा कल्याणकारी हैं |वह शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं।सम्पूर्ण जगत् जलमग्न था और भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा का आश्रय ले सो रहे थे, उस समय उनके कानों के मैल से मधु और कैटभ दो भयंकर दैत्य उत्पन्न हुए। वे दोनों ब्रह्माजी का वध करने को तैयार हो गये। भगवान विष्णु के नाभिकमल में विराजमान प्रजापति ब्रह्माजी ने जब उन दोनों भयानक असुरों को अपने पास आया और भगवान को सोया हुआ देखा, तब एकाग्रचित्त होकर उन्होंने भगवान विष्णु को जगाने के लिये उनके नेत्रों में निवास करनेवाली योगनिद्रा का स्तवन आरम्भ किया। जो इस विश्व की अधीश्वरी, जगत् को धारण करनेवाली, संसार का पालन और संहार करने वाली तथा तेज:स्वरूप भगवान विष्णु की अनुपम शक्ति हैं, उन्हीं भगवती निद्रादेवी की भगवान ब्रह्मा स्तुति करने लगे। ब्रह्मा जी ने स्तुति करते हुए अन्त में प्रार्थना की कि जो इस जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन भगवान को भी जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में यहाँ कौन समर्थ हो सकता है? मुझको, भगवान शंकर को तथा भगवान विष्णु को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है; अत: तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसी में नहीं है? देवि! ये जो दोनों दुर्धर्ष दैत्य मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो और जगदीश्वर भगवान विष्णु को शीघ्र ही जगा दो। साथ ही इनके भीतर इन दोनों महान दैत्यों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर दो। इस प्रकार स्तुति करने पर तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी योगनिद्रा भगवान के नेत्र, मुख, नासिका, बाहु, हृदय और वक्ष:स्थल से निकलकर ब्रह्माजी के समक्ष उपस्थित हो गयीं। योगनिद्रा से मुक्त होने पर भगवान जनार्दन उस एकार्णव के जल में शेषनाग की शय्या से जाग उठे। उन्होंने दोनों पराक्रमी असुरों को देखा जो लाल आँखें किये ब्रह्माजी को खा जाने का उद्योग कर रहे थे। तब भगवान श्रीहरि ने दोनों के साथ पाँच हजार वर्षो तक केवल बाहुयुद्ध किया। इसके बाद महामाया ने जब दोनों दैत्यों को मोह में डाल दिया तो वे बलोन्मत्त होकर भगवान से ही वर माँगने को कहा। भगवान ने कहा कि यदि मुझ पर प्रसन्न हो तो मेरे हाथों मारे जाओ। दैत्यों ने कहा जहाँ पृथ्वी जल में डूबी न हो, वहीं हमारा वध करो। तब भगवान ने तथास्तु कहकर दोनों दैत्यों के मस्तकों को अपनी जाँघ पर रख लिया तथा चक्र से काट डाला। इस प्रकार देवी महामाया (महाकाली) ब्रह्माजी की स्तुति करने पर प्रकट हुई। त्रिनेत्रा भगवती के समस्त अंग दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं।

पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य भगवान ने कहा कि माँ शक्ति भिन्न-भिन्न नामों एवम् रूपों में अपने भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करती हैं | माँ दुर्गा जी यहाँ विधि-विधान से विराजमान होकर निश्चित रूप से अपने भक्तों का कल्याण करेंगी |

--स्वामी बृजभूषणानन्द जी महाराज

 

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माँ शक्ति भिन्न-भिन्न नामों एवम् रूपों में अपने भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करती हैं |
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