हिमाचल प्रदेश का 2021-22 का जो बजट मंत्री महोदय ने द्वारा प्रस्तुत किया है
वो जुमलों से भरा हुआ है, जिसकी न कोई दशा है न दिशा, बल्कि दुर्दशा है। 50192 करोड़ के बजट में 1423 करोड़ का घाटा दिखाया गया है इसको पूरा करने का कोई उपाय नहीं सुझाया गया है। इसका मतलब यह कि जो प्रदेश 60500 करोड़ के कर्ज में डूबा हुआ है उसके बावजूद 1423 करोड़ का कर्जा और इस साल लिया जाएगा
इस बजट से किसान,बागबान, कर्मचारी, व्यापारी, किसी को कोई राहत नहीं मिली है। बिगड़ती अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए कोई उपाय नहीं सुझाया गया है। कर्ज और केन्द्र अनुदान के बल पर यह सरकार चल रही है।
बात यह है कि जब मंत्री, विधायक, चेयरमैन के वेतनमान, मानदेय रिलीज कर दिए तो कर्मचारियों की रेल पीछे कैसे रह गई। आज हिमाचल भारतवर्ष में टॉप पर है। शिक्षा में दुसरे स्थान पर है। हिमाचल को बनाने और संभारने में इन कर्मचारियों ने अपना योगदान दिया, उनके लिए सरकार भूल गई। न डीए की बात की गई ,न एनपीएस को ओपिएस में लाने की बात की गई । कॉन्टरैक्ट अवधि को 3 वर्ष से कम करके 2 वर्ष करने की बात भी नहीं की गई। बीजेपी के दृष्टि पत्र में किए गए वायदे से मुकर गए। करुणामूलक आधार पर नौकरियां देने की कोई बात नहीं की। कर्मचारियों की 4-9-14 की पॉलिसी बेमानी हो गई। यानी कि कर्मचारी ठगा सा रह गया। पे कमीशन पर कुछ नहीं बोला और न ही जिन कर्मचारियों के पदनाम बदलने थै उनकी बात की, जैसे शास्त्री, एलटी मास्टर, एनटीटी मास्टर , फिजिकल एजुकेशन टीचर कै बारे में कोई बात नहीं की गई।
हिमाचल प्रदेश का ढाई लाख कर्मचारी आज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है सवाए झांसे के कुछ नहीं मिला। इस सरकार ने आंगनबाड़ी वर्कर, आंगनबाड़ी सहायिका मिनी आंगनवाड़ी वर्कर, वाटर गार्ड,सहायिका, सिलाई अध्यापिका, पंचायत चौकीदार, पैरा वाटर गार्ड, मिड डे मील वर्कर, लंबरदार, वाटर फिटर, पंप ऑपरेटर, पार्ट टाइम वर्कर, पटवार चौकिदार, चेनमैन, आदि को , जिनका हर साल 1000 से 2000 के बीच मे वेतन या मानदेय बढ़ाया जाता था उनको 100 से 500 तक वेतन/मानदेय बढ़ाकर छुनछु थमा दिया ।
बेरोजगारों की बात की जाए तो उसके लिए सरकार के न कोई प्लान है न पालिसी। न सरकार में नौकरी की बात की गई न प्राईवेट में। इन्वेस्टर मीट से आस बंधी थी वह भी जुमला ही साबित हुआ। 14-15 लाख बेरोजगार युवाओं की फौज प्रदेश में खड़ी हो गई है लेकिन सिर्फ 20-30 हजार नौकरियाँ देने की बात कर, वह भी बैक डोर एंट्री से करने के सिवाय कुछ आप से नहीं हुआ है।
एक शगुन योजना शुरु करने की बात की गई है वह भी तरुटी पूर्वक है। इसमें यह कहा गया है शादी पर 31000 रुपये उन एससी, एसटी और ओबीसी परिवारों को मिलेगी जो बीपीएल/आईआरडीपी में आते हैं। कंडीशन लगाना कोई भी तर्कसंगत नहीं है। क्योंकि एससी, एसटी, ओबीसी में और जनरल कैटेगरी में लाखों ऐसे परिवार हैं जो बीपीएल/आईआरडीपी में तो नहीं आते हैं पर वे 2 जून की रोटी भी नहीं कमा पाते हैं। उनकी हालत बदतर है। उनके लिए कोई राइडर नहीं लगाना चाहिए।
कुल मिलाकर देखा जाए तो इस बजट में दूरदर्शिता नहीं है।प्रगति मीडिया संवाददाता जतिन कुमार की रिपोर्ट.
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