शिक्षक दिवस पर विशेष- गुरुवर पारसनाथ मिश्र

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           शिक्षक दिवस पर विशेष- गुरुवर पारसनाथ मिश्र

  सोनभद्र।  परम आदरणीय, प्रातः स्मरणीय, शिष्यों के लिए बंदनीय गुरुवार पारस नाथ मिश्र विज्ञान एवं हिंदी साहित्य के मध्य सामंजस्य स्थापित भौतिक विज्ञान कृषि विज्ञान के शिक्षक एवं हिंदी साहित्य में कीर्तिमान स्थापित किया है।

2 जनवरी 1937 को ग्राम- परही, पोस्ट- मधुपुर, जनपद सोनभद्र मे स्वर्गीय भूलन राम मिश्र एवं स्वर्गीय गुलाबी देवी के घर जन्म लिया और हिंदी एमएससी (भौतिक विज्ञान एवं कृषि विज्ञान) की शिक्षा प्राप्त कर राजा शारदा महेश इंटर कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता के तौर पर शिक्षण कार्य करते हुए, एक कुशल खिलाड़ी की तरह वॉलीबॉल, फुटबॉल खेलते हुए अवकाश प्राप्त किया। तत्पश्चात गुरु नानक बालिका विद्यालय इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य किया।

 गुरुवर की प्रथम कृति रामानुज भारत (महाकाव्य) भारतीय संस्कृति के रस में पगी हिंदी साहित्य की वह उत्कृष्ट रचना है जिसमें त्रेता युगीन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के कनिष्ठ भ्राता योगी भारत का चरित्र चित्रण किया है। इसके साथ ही साथ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कथा को भी योगी भरत की कथा में पिरोकर त्रेता युग से कलयुग तक की सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक अनुज प्रेम की यात्रा करते हुए कवि ने वर्तमान समाज परंपराओं को रामानुज भरत महाकाव्य में समाहित किया है।  दीर्घावधि मे रचित यह महाकाव्य हिंदी साहित्य का एक अनमोल रतन के रूप में पाठकों के हाथों में आया।

  वाल्मीकि कृत रामायण, गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस, अन्य भारतीय भाषाओं में रामायण की टीकाओ का साहित्यिक उपयोग गुरुवर ने संदर्भ ग्रंथ के रूप में किया है।

रामानुज भरत की रचना के बाद गुरुवर की 16 अन्य कृतिया प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें राष्ट्रा अनुराग, मधु मालिनी, कविता, उर्मिका, रसेश्वरी राधा, निबंध निधि, साम्यवाद, गीता- प्रदक्षिणा, भूल पाइब का, औरत, ऐसे कैसे जिए, चिंतन- मेरू, अनुभूति के अंकुर, मुट्ठी भर मुस्कान, आओ फिर लौट चलें, आस्था के रंग इन कृतियों में श्रृंगार रस (संयोग- वियोग) वीर रस, हास्य रस आदि रसों से भरपूर, गीतों का संकलन किया है। इन कृतियों में पारंपरिक लोकगीत जैसे कजली, सोहर, विवाह, जन्म संस्कार एवं समाज में मांगलिक अवसरों पर गाए जाने वाले लोकगीतों का भी संकलन किया है।

लोकगीतों के संकलन में गोलोकवासी गुरुमाता कलावती देवी का अतुलनीय योगदान रहा है इस तथ्य को हमारे गुरुजी बड़ी ही साफगोई से स्वीकार करते हैं, सभी सफल पुरुषों की तरह जिनका मानना था कि  एक सफल पुरुष के पीछे एक नारी का हाथ होता है। जेठ की दुपहरी हो या सावन की रिमझिम फुहार इस मौसम में भी मैं गुरुवर को गुरुमाता के साथ गीतों के ताल, छंद, मात्रा, विषय, शीर्षक आदि पर वार्तालाप करते हुए देखा और सुना है, गुरुवर के मुख से मैंने कई बार सुना था कि गुरुमाता को पारंपरिक लोकगीत कंठस्थ है, मैंने कई बार अपने चैनल के लिए रिकॉर्डिंग का प्रयास भी किया लेकिन हर बार गुरु माता अपनी स्त्रोचित मर्यादा, संकोच आदि के कारण कैमरे के सामने आने, गाने से हिचकती रही। उन्होंने मुझसे कई बार कहा कि गाना- बजाना अकेले में नहीं होता इसके लिए संगी साथियों  की आवश्यकता होती है, इस तरह का माहौल बन नहीं बन पाया, हां इतना जरूर गुरु माता ने वायदा किया कि पौत्री स्मृति और आराध्य के विवाह में मैं जरूर गाऊंगी, ढोलक बजाऊंगी, वह अवसर आया  भी दोनों बच्चों की शादी में मैं उपस्थित रहा लेकिन घर के गाने- बजाने में मैं शामिल नहीं हो पाया, बाद में सुना था कि गुरुमाता ने झूम कर कई पारंपरिक गीत गए थे।

शादी के बाद मैं घर जाकर कई बार प्रयास किया, मेरे इस प्रयास में गुरुजी, बड़े भाई अनूप जी, उनकी दिवंगत पत्नी मंजू भाभी सहयोगी रही लेकिन बात कुछ बन न सकी, चाय नाश्ते के बाद मै खाली हाथ लौट आता था, एक बार गुरु पूर्णिमा के अवसर पर बहुत कहने- सुनने पर गुरुजी और गुरुमाता का मैंने आशीर्वाद लिया और इस अवसर पर एक दुर्लभ फोटो भी मैंने अपने मोबाइल में कैद किया। गुरुजी की लगभग सारी रचनाओं के समय मैं शिष्य की भांति उपस्थित रहा और समय-समय पर अपने अल्पज्ञान के माध्यम से जो मुझे अच्छा लगता था मैं उस पर राय दिया करता था, कुछ बातें गुरुजी मान लेते थे और कुछ को अपने तर्क की कसौटी पर कसकर दरकिनार कर देते थे।

 मेरे स्वर्गीय पिताजी बताएं करते थे कि गुरुजी ने उन्हें भी राजा शारदा महेश इंटर कॉलेज में पढाया है,इस नाते गुरुजी के प्रति मेरा आदर, भाव, मान, सम्मान कई गुना बढ़ जाता था और हम कॉलेज में ऐसा महसूस करते थे कि हम किसी अभिभावक की छत्रछाया में शिक्षा ग्रहण कर रहे हो। गुरुजी विज्ञान के शिक्षक थे और मैं कला वर्ग का छात्र यद्यपि कक्षा में कभी गुरुजी से  मेरा पाला तो नहीं पड़ा लेकिन परीक्षा समिति में होने के कारण गुरुजी चीटिंग करने वाले छात्रों को पकड़ा करते थे और मौके पर शारीरिक दंड भी देते थे, राजा शारदा महेश इंटर कॉलेज से शिक्षा पूरी करने के बाद गुरुजी से मेरी मुलाकात हो जाया करती थी, क्योंकि पत्रकारिता  से मै राजा शारदा महेश इंटर कॉलेज के छात्र जीवन से ही जुड़ा था और जिज्ञासु मन होने के कारण साहित्य लेखन की ओर मेरा झुकाव हो रहा था और राजा शारदा महेश इंटर कॉलेज की वार्षिक पत्र का ऋचा में मेरा एक लेख प्रकाशित हुआ था, उसे समय मैं कक्षा 9 (ग) का विद्यार्थी था।

 गुरुजी से मेरी मेल- मुलाकातों का सिलसिला बढा जब गुरु नानक बालिका इंटर कॉलेज में वे प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत थे और मेरा व्यवसाय भी यही से जुड़ा हुआ था इसलिए साल के दो-तीन महीने कॉलेज में काम करते हुए गुजर जाते थे, जहां तक मुझे जानकारी है कि इस अवधि में गुरुजी की ज्यादातर रचनाएं प्रकाश में आई।

गुरुजी के व्याख्यान को मैंने कई बार मंचों पर और अपने यहां आयोजित संगोष्ठियों में सुना है। गुरुजी एक शिक्षक की भांति व्याकरण की कमियों को चाह कर भी नहीं बर्दाश्त कर पाते और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उसे कार्यक्रम में ही प्रगट कर देते हैं।

  श्रृंगार रस के काव्य के महारथी गुरुवर श्रृंगार रूपी समुद्र के गहराई में  तह जाकर शब्द रूपी मोती को चुनकर ऐसी कविता की रचना कर काव्यात्मक शैली में उसका गायन से हृदय के तार झनझना उठते हैं।

साधारण वेशभूषा वाले गुरुजी इस आयु में भी नौजवानों की तरह दमखम दिखाते हुए वाणी, लेखन के माध्यम से  नौजवानों को पीछे छोड़ रहे हैं।

 गुरुमाता के जाने के बाद गुरुजी ने भाग्य की नियति मानकर वियोग पीड़ा, कष्ट, दुख को सहते हुए भी गुरुमाता के साथ बीते हुए काव्यात्मक पल को अपना संबल मानते हुए नई पुस्तक आस्था के रंग को लेकर साहित्यिक समाज के सामने उपस्थित हुए गोस्वामी तुलसीदास की जयंती 23 अगस्त 2023 को।

 ‌ नगर पालिका कार्यालय के सभागार में इस कृति का विमोचन सोच- विचार पत्रिका के प्रबंध संपादक डॉक्टर जितेंद्र नाथ मिश्रा मुख्य आथित्य एवं वाराणसी एवं सोनभद्र की प्रख्यात साहित्यकारों की उपस्थिति में।

 इस विमोचन समारोह में मुझे भी सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ गुरुजी ने इस अवसर पर विमोचित कृति की एक लंबी कविता भी सुना कर कृति की सार्थकता को सिद्ध किया और संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास पर रचित अपनी कविता का काव्य पाठ ओज स्वर में किया।

 गुरुजी आजीवन शिक्षक, खिलाड़ी रहे। छात्र जीवन से सेवानिवृत्ति तक प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस समारोह में शामिल रहे।  भारत के द्वितीय राष्ट्रपति महामहिम सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए जाने की परंपरा चली आ रही है। प्रतिवर्ष पारंपरिक वेशभूषा वाले चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

  सर्वपल्ली राधा कृष्णन जी की कांच के अंदर फ्रेम में मढी हुई पारंपरिक वेशभूषा धारी चित्र हम भारतीयों से बहुत कुछ करना चाहती है, लेकिन वह खामोश है, मौन है।

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