बिरसा मुंडा ने सोनभद्र के आदिवासी आंदोलनों से प्रेरणा ग्रहण किया।
-सेवा कुंज आश्रम में विरसा मुंडा बनवासी विद्यापीठ स्थापित है।
--आंदोलन के समय सोनभद्र का दक्षिणांचल बंगाल राज्य से जुड़ा था।
-देशभर में होने वाले आंदोलनों से सोनभद्र के आदिवासी प्रभावित थे।
-बिरसा मुंडा के आंदोलन में सोनभद्र के आदिवासियों की रही सक्रिय भूमिका।
सोनभद्र-बीसवीं शताब्दी के सबसे महत्वपूर्ण निर्णायक आंदोलन का नेतृत्व करने अप अल्प जीवन काल में ही भगवान की उपाधि प्राप्त करने वाले बिरसा मुंडा सोनभद्र जनपद में अंग्रेजो के खिलाफ होने वाले ससस्त्र आंदोलन से प्रेरित थे।
यह दावा इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी का है।
ब्रिटिश सरकार से काशी नरेश के पक्ष में युद्ध करते सैकड़ों आदिवासी सैनिकों का बलिदान, 1857 में वीर कुंवर सिंह के नेतृत्व में संगठित अंग्रेज सरकार के खिलाफ विद्रोह, 1870- 71 में जुरा महतो, बुधु भगत का अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह आदि घटनाएं बिरसा मुंडा के जन्म के पूर्व क्षेत्र में आंदोलन का रंगमंच तैयार कर चुकी थी।
सर्वप्रथम भगवान बिरसा मुंडा ने ईसाइयत और अपने स्कूल के खिलाफ विद्रोह शुरू किया जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें स्कूल से बाहर निकाल दिया गया जिसके परिणाम स्वरूप सोनभद्र के दक्षिणांचल एवं आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी जातियों के नौजवान अंग्रेजो के खिलाफ एकत्रित होने लगे थे। बिरसा मुंडा ने अपने आंदोलन को धर्म से जोड़कर जगह- जगह सभाएं करके लोगों को अंग्रेजो के खिलाफ खड़ा किया और कर न देने का ऐलान किया। और अपने क्षेत्र के आसपास अंग्रेजो के खिलाफ होने वाले ससस्त्र आंदोलनों का गहन अध्ययन किया और उसके अनुसार रणनीति तैयार किया।
अंग्रेज सरकार जनता को बरगलाने के जुर्म में 18 95 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया और हजारीबाग के केंद्रीय कारागार में 2 साल कारावास की सजा दी गई।
भगवान बिरसा मुंडा के गिरफ्तारी से आंदोलन में कोई कमी नहीं आई मुंडा नौजवान जगह- जगह पर गुप्त तरीके से आंदोलन का प्रचार- प्रसार करते रहे। वर्तमान सोनभद्र के दक्षिणांचल एवं आसपास के आदिवासी इलाकों में रहने वाले आदिवासी अंग्रेजो के खिलाफ संगठित हो उठे जगह- जगह पर मुंडा नौजवानों की बैठको मे अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह की रणनीति तैयार होने लगी, भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन के समय सोनभद्र के आदिवासी आंदोलनकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।1897 मे वीरसाइत युवा मुंडा 400 सैनिकों ने तीर कमान से लैस होकर खूटी थाने पर धावा बोला दिया और 1998 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई अंग्रेज सेना हार गई। कालांतर में अंग्रेज सैनिकों ने मुंडा सैनिकों उनके परिजनों को ।काफी क्षति पहुंचाई। बिरसा मुंडा के आंदोलन ने अंग्रेजों को नाकों में चने चबवा दिए अंग्रेजों ने इनकी गिरफ्तारी के लिए चारों तरफ जाल बिछा दिए थे।
जनवरी 1900 में डोंगरी पहाड़ पर एक और संघर्ष हुआ जिसमें बहुत सी औरतें वह बच्चे मारे गए 3 फरवरी ,1900 को चक्रधरपुर के घने जंगलों के बीच बिरसा मुंडा अपने सहयोगियों के साथ आराम कर रहे थे उनके ही एक गद्दार सैनिक के द्वारा अंग्रेज सेना को सूचित किया गया और उन्हें गिरफ्तार रांची के जेल में रखा गया।
9 जून 1900 को उन्हें जहर देकर मार दिया गया। उनकी मौत के पश्चात सोनभद्र सहित वर्तमान झारखंड पूर्व बिहार राज्य में तेजी के साथ क्रांति फैली लेकिन अंग्रेजों ने इस क्रांति को कुचल दिया।
भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन को समझने के लिए सोनभद्र के इतिहास का अध्ययन आवश्यक है।
आज भगवान बिरसा मुंडा की समाधी रांची के कोकर के निकट डिसिटलरी पुल के पास स्थित है, वहीं पर उनका स्टेचू लगा हुआ है, रांची में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडाअंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी स्थापित है। बिरसा मुंडा के सम्मान में सोनभद्र जनपद के म्योरपुर ब्लाक के सेवा कुंज आश्रम बिरसा मुंडा विद्यापीठ की स्थापना आदिवासी जातियों के भगवान कहे जाने वाले बिरसा मुंडा को सम्मान दिया गया है।
सन 1921 में भारत सरकार ने 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा की जयंती को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।
15 नवंबर 2022 को सोनभद्र जनपद के म्योरपुर ब्लाक के शांतिकुंज सेवा आश्रम में बिरसा मुंडा की जयंती जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का इस कार्यक्रम में आगमन एवं वनवासी समागम का आयोजन से जनपद सोनभद्र एवं आसपास के राज्यों से पधारने वाले विविध आदिवासी जातियों के कला, संस्कृति, साहित्य, इतिहास को समझने का स्वर्णिम अवसर है।
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