शक्ति उपासना का केंद्र रहा सोनभद्र
-जिल में शक्ति उपासना की परंपरा आदिकालीन से चली आ रही है।
-तंत्र साधना का केंद्र रहा सोनभद्र
-नवरात्रि में होती है विशेष पूजा अर्चना
सोनभद्र। सोनभद्र जनपद शिव और शक्ति की उपासना का प्रमुख केंद्र रहा है विंध्याचल पर्वत पर अवस्थित मां विंध्यवासिनी, मां अष्टभुजा, मां काली का प्राचीन मंदिर अवस्थित होने के कारण इस क्षेत्र में शक्ति पूजा प्रचलन प्राचीन काल से है।
इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार-"नवरात्र के महीने में सोनभद्र जनपद के घरों में मंदिरों में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा- आराधना एवं अपनी मनोकामना ओं को पूरा करने के लिए, मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए महिलाओं द्वारा मंदिरों, घरों में ढोलक की थाप पर पचरा, देवी गीत, भजन गाने की परंपरा है। आदिवासी क्षेत्र होने के कारण सोनभद्र जनपद में नवरात्र में विशेषकर तंत्र साधकों द्वारा तंत्र मंत्र के माध्यम से लोक कल्याण का कार्य किया जाता है और कुछ तांत्रिक, ओझा देवी मंदिरों में अपना दरबार लगाकर ओझाई का भी कार्य करते हैं और यह आदिवासी मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए मदल व अन्य वाद्य यंत्रों की धुन पर देवी नृत्य करते हैं और सांगा से अपने जीभ,बाहर में छिद्र करके सांगा पहन लेते हैं और तंत्र- मंत्र, भक्ति का यह प्रभाव होता है कि इन आदिवासियों के शरीर से न तो रक्त की एक बूंद निकलती है नही इन्हें दर्द होता है।"
साहित्यकार प्रतिभा देवी के अनुसार-"सोनभद्र जनपद सहित विंध्य क्षेत्र में शीतला माता के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा है ,इन्हें महारानी देवी भी कहा जाता है और नीम के वृक्ष पर इनका स्थान माना जाता है चेचक निकलने पर तथा नवरात्रि के 9 दिन नीम के वृक्ष पर जल, फूल, माला ,दीपक आदि चढ़ाया जाता है,शीतला माता की कृपा बनी रहे इसलिए चुना एवं ऐपन से भरे हाथों के छाप घरों दीवारों, मंदिरों की दीवारों पर लगाती है। माता को खटोला, चूड़ी, फुलेरा, चोटी, कंघी तथा सिंदूर आदि श्रृंगार की वस्तुएं भी चढ़ाई जाती हैं।
शीतला मंदिर के पुजारी प्रशांत कुमार शुक्ल के अनुसारक -" सोनभद्र जनपद के मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज के मुख्य चौराहे पर अवस्थित मां शीतला का मंदिर भक्तजनों के आस्था और विश्वास का केंद्र है आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व वर्तमान मंदिर स्थल पर नीम के पेड़ के नीचे मां शीतला की मूर्ति स्थापित थी और भक्तजनो द्वारा मां शीतला की पूजा- आराधना किया जाता था, नगर के पूर्व चेयरमैन एवं व्यापारी भोला सेठ द्वारा इस मंदिर को अपनी भूमि दान में दिया गया और सन 1973 में मंदिर का निर्माण आरंभ हुआ और आज दानदाताओं के सहयोग से इस मंदिर का भव्य रूप दिखाई देता है ।"
भक्त गुलाबी देवी के अनुसार-"शारदीय नवरात्र में लोग प्रथम दिवस पर भूमि को साफ कर ऐपन से गोलाकार चौक बनाते हैं और उस पर ताम्र कलश स्थापित कर उसमें जल भरकर उस पर आम्र पत्र रखकर लाल कपड़े में नारियल को लपेट कर घट पर रखते हैं और घट पर रोली से स्वास्तिक का अंकन कर दीपक जलाते हैं, मिट्टी के अन्य पात्रों में भी जौ बोया जाता है तथा 9 दिन तक श्रद्धा, विश्वास एवं शुद्धता के साथमां भगवती का आवाहन करते हैं और विधिवत गंध, अक्षत, पुष्प, दीप, नवोदय, तांबूल व आरती द्वारा उनकी पूजा करते हैं ।"
शिक्षिका तृप्ति केसरवानी के अनुसार-"हर दिन पूजा के स्थान के दीवार पर ऐपन लगाया जाता है, एक वर्गाकार स्थान को ऐपन लगा कर घट के ठीक सामने देवी का स्थान मान लिया जाता है तथा दाहिने हाथ से पूजा करने वाला ऐपन लगाया जाता है और नवरात्र के अष्टमी नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उन्हें भोजन कराया जाता है और उन्हें उपहार भी दिया जाता है उपहार में मुख्य रूप से खिलौने, फल, रुपए दिए जाते हैं, सोनभद्र जनपद में नवरात्र में देवी की पूजा, शतचंडी पाठ, दुर्गा सप्तशती पाठ स्वयं अथवा पुरोहितों के माध्यम से कराया जाता है, कुछ परिवारों में 9 दिन तक साविधि पूजन उपरांत कथा भी सुनाए जाने की प्रथा है। " सोनभद्र में प्रचलित लोककथा के अनुसार-" एक समय महिषासुर नामक असुर हुआ जिसके आतंक से भयभीत इंद्र आदि राजाओं ने देवी का संस्मरण किया देवी का एक प्रकाश पुंज ज्योति के रूप में प्रकट हुई और उन्होंने मूर्तिमान रूप धारण किया, उस मूर्ति के तीन नेत्र और आठ भुजाएं थी सभी देवों ने मूर्ति पूजा की, विष्णु ने अपना चक्र,कमंडल, शिव ने त्रिशूल, इंद्रदेव अपनी शक्ति, आयुष यमराज ने खड़्क अग्निदेव ने धनुष- बाण, लक्ष्मी ने अपना सिंगार व हिमालय ने सवारी हेतु सिंह प्रदान किया।
इस प्रकार सज्जित होकर युद्ध मे शक्ति ने महिषासुर का सिर खड़क से काट डाला तथा शुंभ निशुंभ राक्षसों का मर्दन किया।
रामलीला समिति रॉबर्ट्सगंज की अध्यक्ष पवन कुमार जैन के अनुसार-" शरदीय नवरात्र का अपना एक अलग महत्व होता है, इसी नवरात्र में दुर्गा महोत्सव का भी आयोजन होता है नगर के विभिन्न मोहल्लों में मां दुर्गा का पंडाल स्थापित किया जाता है।
दुर्गा पांडाल में सप्तमी के दिन मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और 3 दिन तक भव्य महोत्सव मनाया जाता है और दसवें दिन स्थानीय रामलीला मैदान में दशहरा के मेले का आयोजन होता है और मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा दशानन का वध किया जाता है एकादशी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन स्थानीय नदियों में किया जाता है।
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