नारी शोषण का विरोध किया था सोनभद्र की महिला सेनानी राजेश्वरी देवी ने
-जनपद की एकमात्र महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थी राजेश्वरी देवी।
- अंग्रेज सिपाहियों द्वारा शोषण के खिलाफ दुद्धी में खड़ा किया आंदोलन।
- भारत छोड़ो आंदोलन मे गई थी जेल।
- व्यापारियों में दिया दुद्धी में स्वतंत्रता आंदोलन को धार।
सोनभद्र। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष मे संपूर्ण देश आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी में तिरंगा यात्रा, स्वतंत्र आंदोलन से जुड़े हुए व्याख्यानमाला आदि का आयोजन एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रत्येक जनपद में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम पर बस चलाने का एलान अमृत महोत्सव की विशेषता की व्याख्यान करता है।
इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार-"भारत के एकमात्र जनपद सोनभद्र का दुद्धी तहसील बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ राज्यों की सीमाओं से घिरा दुद्धी तहसील का स्वाधीनता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
जनपद सोनभद्र की महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का गौरव दुद्धी नगर की तेजतर्रार, निडर, स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजेश्वरी देवी का उल्लेख आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष का सार है।
काला पानी के नाम से विख्यात जल- मार्ग विहीन, वनों, हिंसक वन्यजीवों से भरपूर दुद्धी क्षेत्र में महात्मा गांधी के आवाहन पर स्वतंत्रता आंदोलन का बिगुल मिर्जापुर जनपद के अहरौरा क्षेत्र के सुप्रसिद्ध व्यापारी वृंदा साव, जगरनाथ साव, बद्री प्रसाद "आजाद", ज्वाला प्रसाद, गौरी शंकर श्री राम, हीरालाल गुप्त, राबर्ट्सगंज के क्रांतिकारी बलराम दास केसरवानी, चंद्रशेखर वैद्य सहित अन्य नेताओं द्वारा स्थानीय निवासियों द्वारा सन 1921 में बजाया था।
1942 में जब महात्मा गांधी ने अंग्रेजो के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तब इस आंदोलन की गूंज मिर्जापुर जनपद के दूरस्थ वनवासी बाहुल्य इलाकों में पहुंची और यहां के लोगों ने अंग्रेजो के खिलाफ हथियार उठा लिया था, उनमें दुद्धी नगर की समाजसेवी, तेजतर्रार एवं अपने हृदय में आजादी प्राप्त करने का सपना संजोए राजेश्वरी देवी ने रूढ़िवादिता, पर्दा प्रथा को तोड़ते हुए घर की दहलीज को लांघते हुए आदिवासी महिलाओं के आर्थिक, शारीरिक शोषण के विरुद्ध दुद्धि के ग्रामीण, जंगली इलाकों में असहयोग आंदोलन का प्रचार- प्रसार किया और इस आंदोलन से स्त्रियों- पुरुषों, युवाओं को जुड़ने का आह्वान किया, और इनके पीछे चल पड़ी थी आजादी की दीवानो की टोलियां।
इनके आक्रामक, शासन प्रशासन के विरुद्ध चलाए जाने वाले अभियान से ब्रिटिश साम्राज्य घबरा उठी थी और इन्हें असहयोग आंदोलन में भाग लेने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया उस समय किसी महिला की गिरफ्तारी और जेल अपने आप में एक सामाजिक सजा थी, जिसे राजेश्वरी देवी ने भोगा और न्यायालय द्वारा इन्हें 2 वर्ष की कठोर सजा एवं ₹50 जुर्माना की सजा मुकर्रर किया।
2 वर्ष की सजा काटने के बाद राजेश्वरी देवी ने जुर्माना की रकम देने से साफ-साफ इंकार कर दिया, जिसके एवज में उन्हें 1 महीने अतिरिक्त जेल की सजा भुगतनी पड़ी। मिर्जापुर जेल से रिहा होने के बाद राजेश्वरी देवी पुनः आंदोलनकारी गतिविधियों में लग गई।
15 अगस्त 1947 को हमारा देश ऐसी ही वीरांगनाओं के बल पर आजाद हुआ हम सोनभद्र वासियों को ऐसी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजेश्वरी देवी पर गर्व है और इनका नाम सोनभद्र जनपद के इतिहास पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
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