पर्यावरण संरक्षण में नारियों का महत्वपूर्ण योगदान है
रॉबर्ट्सगंज,सोनभद्र। सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, कलात्मक एवं प्रकृति के संरक्षण में नारियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिससे गांव, घर, देश, समाज का संचालन आदिकाल से होता रहा है।अपने छत को बाग के रूप में तब्दील कर विविध प्रकार के फल- फूलों, सब्जियों, औषधीय वृक्षों को रोपित कर अन्य लोगों को वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाली आदिवासी लोक कला केंद्र की सचिव, वरिष्ठ साहित्यकार प्रतिभा देवी का पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य कर रही हैं।
युवा पत्रकार हर्षवर्धन द्वारा लिए गए साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि-"आधुनिक वैज्ञानिक युग में गमलों में भी में भी बड़े वृक्ष जैसे नीम, बरगद, पीपल, आम,अमरूद, बेलदार पौधे खीरा, ककरी, खरबूजा, औषधीय पेड़ तुलसी, गुरुच, एलोवेरा, विविध प्रकार के फूलों, सजावटी पेड़ पौधों को लगाया जा सकता है उन्होंने बताया कि मैंने खुद अपने घर की छत पर इन सभी पौधों को लगाया है। उन्होंने आगे बताया कि पेड़ पौधे को लगाकर जहां एक ओर पर्यावरण का संरक्षण, संवर्धन किया जा सकता है वहीं पर इस पुण्य कार्य से जहां एक ओर मानव अपने जीवन को स्वस्थ रख सकता है वही दूसरी ओर अर्थ की बचत कर सकता है। कोरोना संक्रमण काल में गुरुच, तुलसी आदि पौधों का काढ़ा बनाकर पीने से लोगों को जीवनदान मिला।
तुलसी, केला, नीम, पीपल, बरगद पेड़ों का पूजन, प्रातः काल को सूर्य अर्घ्य देना, चन्द्रमा का पूजन, जल का पूजन, भूमि पूजन हमारी भारतीय संस्कृति है।
भारतीय ननारियों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए आंदोलन चलाया जिसमें राजस्थान का खेजड़ली आन्दोलन, ‘ईको फेमिनिस्ट’ आन्दोलन, नवधान्या आन्दोलन,नर्मदा बचाओ आन्दोलन प्रमुख है।
राजस्थान के उदयपुर क्षेत्र में महिलाओं ने ऊसर व रेतीली जमीनों को हरे-भरे खेतों में बदल दिया। महिलाओं द्वारा संचालित ‘सेवा मण्डल’ संस्था को 1991 में पर्यावरण संरक्षण हेतु के.पी. गोयनका पुरस्कार दिया गया। बेटी बचाओ, पर्यावरण बचाओ की भावना के साथ सन 2006 में राजस्थान के राजसमन्द जिले के पिपलन्तरी के ग्राम में बेटी के जन्म पर 111 वृक्ष लगाने का नियम बनाया गया। इस योजना में अब तक 2.86 लाख पेड़ लगाए जा चुके हैं। उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जनपद आदिवासी बाहुल्य इलाका है, जहां पर पेड़ों के कटने के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो चुका है, अक्सर इस क्षेत्र के लोगों को सूखा के संकट का सामना करना पड़ता है और आदिवासी स्त्रियों का ज्यादातर समय दूरदराज इलाकों से चुआड से पानी लाने में ही व्यतीत हो जाता है। हमें इस क्षेत्र के लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करना चाहिए और वन विभाग, उद्यान विभाग व अन्य संबंधित संस्थाओं को पर्यावरण संरक्षण हेतु वृक्षारोपण के लिए जनजागृति अभियान चलाना चाहिए तभी सोनभद्र वासियों को सूखा से राहत मिल सकता है।
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