उज्जैन : महाकाल की नगरी में विशेष होली का आयोजन .

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 महाकाल की नगरी में एक होली ऐसी भी मनाई जाती है

विश्व की सबसे बड़ी अतिप्राचीन होली.
पर्यावरण_की_रक्षा_एवं प्राचीन_परंपरा_के_निर्वहन_का_संदेश_देती_सिंहपुरी_की_वैदिक_होली.

चार_से_पांच_हजार_कंडो_से_होली_का_निर्माण

विश्व की धार्मिक राजधानी के रुप मे प्रसिद्ध, ज्योतिर्लिंग भगवान श्री महाकालेश्वर व मोक्षदायिनी माँ शिप्रा की पावन नगरी अवंतिका  उज्जैन , मध्य_प्रदेश के अति_प्राचीन_क्षैत्र_सिंहपुरी में सबसे बड़ी होली का निर्माण कर उसका दहन किया जाता है, इस होली की ये विशेषता है कि इसमें सिर्फ गाय के गोबर से निर्मित चार से पांच हजार कंडो का उपयोग किया जाता है, किसी भी प्रकार से लकड़ी का उपयोग नहीं किया जाता जो वातावरण को शुद्ध कर शरीर के रोगों का निवारण करता है।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार सिंहपुरी की होली का इतिहास सम्राट विक्रमादित्य के काल से है, जिसका_दहन_बाबा महाकाल_की_भस्मार्ती_के_समय_ब्रह्ममुहूर्त_में (प्रातः ०४ बजे के लगभग) वैदिक_पद्धति_व मंत्रोच्चार_द्वारा_किया_जाता_है, जिसको तापने के लिए स्वयं योगीराज_भर्तृहरि वहाँ उपस्थित रहते है।
होलिका दहन के पूर्व मध्यरात्रि में श्री_गुर्जर_गौड़ ब्राह्मण_समाज, सिंहपुरी_व_श्री_महाकालेश्वर_भर्तहरि_विक्रम_ध्वज चल_समारोह_समिति_द्वारा_होलिका_का_निर्माण वरिष्ठों_के_मार्गदर्शन_में_युवाओं_द्वारा_किया_जाता_है,

महिलाओ_द्वारा_की_जाती_है_पूजा

संध्या के समय प्रदोष काल मे गोधूलि बेला में सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने सम्पूर्ण परिवार की रक्षा,उन्नति व समृद्धि के लिए होलिका का पूजन किया जाता है।

*चकमक_पत्थर_का_होता_था_उपयोग*

मध्यरात्रि के उपरांत ब्रह्ममुहूर्त में महाभैरव श्री आताल पाताल का पूजन कर सिद्ध अग्नि से होलिका का दहन किया जाता है, प्राचीन समय मे होलिका दहन चकमक पत्थर की रगड़ से उत्पन्न अग्नि से किया जाता था।

भक्त_प्रह्लाद_रूपी_भगवा_ ध्वज🚩

होलिका के ऊपर मध्य में भक्त प्रह्लाद स्वरूपी एक भगवा ध्वज लगाया जाता है,
होलिका दहन से ज्योतिष की कई गणनाएं भी जुड़ी है जिसमे प्रमुख होता है भक्त प्रह्लाद रूपी ध्वज का दिशा में गिरना, अर्थात जिस प्रकार होलिका की गोद से भक्त प्रह्लाद सुरक्षित निकल कर आये थे उसी प्रकार सिंहपुरी की विशाल होली के दहन होने के पश्चात भगवा ध्वज सुरक्षित जिस दिशा में गिरता है उससे ज्योतिषगण ऋतुकाल, वर्षा, फसल, राजनीति आदि विषयों का विश्लेषण करते है एवं इस शुभ ध्वज का एक अंश छोटे बच्चो को गले मे कंठी (ताबीज) 📿बांधने से बच्चो पर बुरी दृष्टि नही लगती है।

#सिंहपुरी_के_आसपास_व_नगर_में_अन्य_स्थानों_की #होली_भी_इसी_होली_के_प्रज्वलित_कंडो_से_ही #चैतन्य_की_जाती_है।

१५ #दिवसीय_होलिका_व_नववर्ष_उत्सव

फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के साथ सिंहपुरी में पंद्रह दिवसीय होलिका उत्सव व नववर्ष उत्सव प्रारम्भ किया जाता है, जो कि पूर्णिमा से प्रारंभ होकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ीपड़वा (भारतीय हिन्दू नववर्ष) तक चलता है।

🎋🥁#मांगलिक_कार्यो_का_प्रारम्भ🎊📯

होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का समापन होता है, तथा मांगलिक कार्यो का प्रारंभ होता है।
जिन लोगो के यहाँ वर्षभर में किसी की मृत्यु होती है उस परिवार के भी लोग आकर होली तापते है तथा श्रीफल, गेंहू की उंबी अर्पित कर मांगलिक कार्य आरम्भ करते है।
सूर्योदय के पश्चात होलिका की परिक्रमा कर एक दूसरे को रंग लगाया जाता है तथा विशाल ध्वज चल समारोह निकाला जाता है।

#शारीरिक_लाभ

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण के अनुसार होलिका की अग्नि में नीम की पत्तियों को तपा कर उसकी भस्म का सेवन करने से तथा अग्नि में पानी को गर्म कर उससे स्नान करने से शरीर के सभी रोगों का निवारण होता है।

#रंगपंचमी_पर_पुरुषों_द्वारा_ठंडा_किया_जाता_है

ये दिव्य होली अगले पांच दिन तक सतत प्रज्वलित रहती है, जिसे रंगपंचमी को दोपहर पश्चात पुरुषों द्वारा जल से ठंडा किया जाता है।

#निकलती_है_हड्डियां

सिंहपुरी की होलिका की सजीवता व चैतन्यता का एक उदाहरण यह भी है कि होली के ठंडा होने के पश्चात इसमे #मानव_शरीर_के_समान_हड्डियों_की_आकृति_निकलती_है, जो इस बात का भी प्रमाण माना जाता है, की होली में होलिका का दहन हुआ है।
इनको #शीतलासप्तमी_के_दिन पूजन कर अंश भर घर के बाहर द्वार पर रखने से भी दरिद्रता का नाश होता है।

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