सच्चा सुख ,शांति अपने अंदर ही है,कहीं बाहर नहीं-आचार्य श्री आर्जवसागर जी महाराज
आचार्य गुरुदेब श्री बिधासागर सागर जी महाराज का 54 बा दिकछा दिबस बड़े ही धुमघाम से मनाया गया, दीप प्रज्ज्वलित ओर पूजन करके आचार्य श्री बिधासागर जी महाराज जी को अर्घ चढ़ा कर मनाया गया जिसमे ,बहन अर्चना जी ,बहन कबिता जी ने मंगलाचरण किया, पश्चात आचार्य श्री आर्जवसागर जी महाराज के मंगल प्रवचन में आचार्य श्री ने अपने मंगल प्रवचन के दौरान कहा कि वास्तविक सुख शांति कहां है? थोड़ा सुख तो मंदिर में है, गुरु के पास है।हमें उनके पास ऐसा लगता है कि बस यही रह जाऊं और कहीं जाना ही ना पड़े। लेकिन अपनी आजीविका की पूर्ति के लिए हमें कहीं जाना भी पड़ता है। सच्ची सुख शांति हमें कहां मिलेगी? उसके लिए क्या करना होगा? तो हमें अपनी अंतरात्मा को जानना होगा। हमें अपने अंतर चक्षु के ज्ञान के माध्यम से और सम्यकदर्शन रूपी लाइट के माध्यम से अपनी आत्मा को जानना होगा। इसी में हमारा और हमारी आत्मा का सच्चा सुख है।
आचार्य श्री ने बताया कि तेरा सुख तो तेरे पास ही है। यह बाहर में मिलने वाली चीज नहीं है। यह तो अंतरंग का सुख है। अगर इस धन- वैभव से सुख शांति मिलती तो चक्रवर्ती,तीर्थंकर यह अपार धन वैभव ऐसे छः खण्ड का राजमहल छोड़कर घर त्याग करके मुनि दीक्षा लेकर तप नहीं करते, वह भी इसी धन वैभव में लगे रहते। लेकिन उन्होंने इस धन वैभव का त्याग किया,जिन दीक्षा को धारण किया और तप करके मोक्ष को प्राप्त किया ।
अतः बंधुओं त्याग में सुख है। राग में दुख इसी तप के माध्यम से यह जीवन सफल हो सकता है। इस धन वैभव से यह सच्ची शांति नहीं मिल सकती। भगवान को देखने मात्र से ही मन में त्याग तप की भावना आ जाती है। ऐसा यह समवसरण का दर्शन और उसमें बैठे भगवान की पूजा, अर्चना ,उनकी आराधना ही हमें सच्चा सुख प्रदान कराएगी।
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