सकट चौथ को माघ के महीने में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष ( Krishna Paksha ) की चतुर्थी तिथि को शास्त्रों ( The scriptures ) में विशेष महत्व दिया गया है. इसे सबसे बड़ी चतुर्थी माना जाता है और सकट चौथ, तिलकुट चौथ, माही चौथ और वक्रतुंडी चौथ ( Sakat Chauth, Tilakut Chauth, Mahi Chauth and Vakratundi Chauth ) जैसे नामों से जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान की आयु लंबी होती है. घर के तमाम संकट ( Problem ) टलते हैं. जो महिलाएं मासिक चतुर्थी का व्रत ( Fast ) नहीं रखतीं, वे भी इस सकट चौथ का व्रत जरूर रखती हैं. इस बार सकट चौथ 31 जनवरी को है. जानिए व्रत विधि कथा और चन्द्रोदय का समय.
व्रत विधि
इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए निर्जल व्रत ( Waterless fast ) रखती हैं. शाम के समय भगवान गणेश का पूजन ( The worship ) कर माताएं उन्हें गुड़ और तिल से बने तिलकुट ( Tilakut ) का भोग लगाती हैं.
इसके बाद व्रत कथा सुनती हैं. फिर चंद्रमा को अर्घ्य ( Arghy )देकर व्रत खोलती हैं. तमाम जगहों पर तिलकुट का पहाड़ या बकरा बनवाकर संतान से कटवाने की परंपरा भी है.
शुभ मुहूर्त
चन्द्रोदय का समय : 31 जनवरी रविवार रात 08 बजकर 40 मिनट पर
चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 31 जनवरी, रविवार रात 08 बजकर 24 मिनट
चतुर्थी तिथि समाप्त : 1 फरवरी, सोमवार शाम 06 बजकर 24 मिनट
व्रत कथा
किसी नगर में एक कुम्हार रहता था. एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवा नहीं पका. परेशान होकर वो राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है. राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा. राजपंडित ने कहा, हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा. राजपंडित की बात सुनकर राजा ने बलि का आदेश दे दिया. एक एक करके नगर के अलग अलग परिवार से एक बच्चा बलि के लिए भेजा जाता. इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुजुर्ग महिला के लड़के की बारी आई. बुजुर्ग महिला के एक ही बेटा था और वही उसके जीवन का सहारा था. वो बेटे को खोना नहीं चाहती थी. ऐसे में उसे एक उपाय सूझा. उसने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा, भगवान का नाम लेकर आंवा में बैठ जाना. सकट माता तेरी रक्षा करेंगी.
सकट के दिन बालक आंवा में बिठा दिया गया और वो महिलए सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी. पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया. सुबह जब कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया. आंवा पक गया था और उस बुजुर्ग महिला का बेटा जीवित व सुरक्षित था. सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे. यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली. तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है.
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