आशीष रावत मध्यप्रदेश - आज शरद पूर्णिमा पर आसमान में सुपरमून दिखाई देगा। शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की विशेष रुप से पूजा-अर्चना की जाती है..
हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होकर अत्यंत तेजवान और उर्जावान होता है और ऐसा माना जाता है कि, इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। शरद पूर्णिमा को खीर का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है। कि इस रात चंद्रमा की रोशनी में खीर रखने से अमृत की बूंदे उस पर भी पड़ती हैं। जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करना स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होता है।इस बार शारद पूर्णिमा 30 अक्टूबर दिन शुक्रवार शाम 5 :45 से आरंम्भ होगी तथा शनिवार रात्रि 8:18 तक रहेगी।
इस दिन खीर बनाने का तरीका बाकी दिनों की तुलना में थोड़ा अलग होता है। शरद् पूर्णिमा के दिन खीर बनाने के लिए व्यक्ति को कुछ खास नियमों का पालन करना पड़ता है। जिसकी अनदेखी करने पर व्यक्ति को इस व्रत का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है. आइए जानते हैं क्या है इस दिन खीर से जुड़े ये कुछ खास नियम -
खीर का बर्तन कैसा हो -
सबसे पहले खीर बनाते समय या चांदनी रात में रखने से पहले उसके पात्र का ध्यान रखें। शरद् पूर्णिमा के दिन खीर किसी चांदी के बर्तन में रखें। यदि चांदी का बर्तन घर में मौजूद न हो तो खीर के बर्तन में एक चांदी का चम्मच ही डालकर रख दे। इसके अलावा आप खीर रखने के लिए मिट्टी,कांसा या पीतल के बर्तनों का भी उपयोग कर सकते हैं। खीर को चांदनी रात में रखते समय ध्यान रखें कि खीर रखने के लिए कभी भी स्टील, एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल न करें। ऐसा करने पर आपकी सेहत प्रभावित हो सकती है।
खीर बनाने का तरीका-
शरद् पूर्णिमा पर बनाई जाने वाली खीर अन्य दिनों की तुलना में थोड़ी अलग होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन बनाए जाने वाली खीर मात्र एक व्यंजन नहीं होती बल्कि यह एक दिव्य औषधि मानी जाती है। इस खीर को किसी भी दूध से नहीं बल्कि गाय के दूध और गंगाजल से बनाना चाहिए। यदि गंगाजल न हो तो शुद्ध जल लें और दोनों बराबर मात्रा में लें, अगर संभव हो सके तो प्रसाद की खीर को चांदी के बर्तन में ही बनाएं। कम से कम 3 घण्टे खीर पर चन्द्रमा की किरणें पड़नी चाहिए।
हिंदू धर्म में चावल को हविष्य अन्न यानी देवताओं का भोजन माना गया है। कहा जाता है कि महालक्ष्मी भी चावल से बने भोग से प्रसन्न होती हैं। संभव हो तो शरद् पूर्णिमा की खीर को चंद्रमा की ही रोशनी में बनाना चाहिए। ध्यान रखें कि इस ऋतु में बनाई खीर में केसर और मेंवों का प्रयोग न करें. दरअसल, मेवा और केसर गर्म प्रवृत्ति के होने से पित्त बढ़ा सकते हैं. खीर में सिर्फ इलायची का ही प्रयोग करना चाहिए।
शरद् पूर्णिमा पर अश्विनी नक्षत्र में चंद्रमा पूर्ण 16 कलाओं से युक्त होता है. खास बात यह है कि चंद्रमा की यह स्थिति साल में सिर्फ एक बार ही बनती है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय आश्विन महीने की पूर्णिमा पर मंथन से महालक्ष्मी प्रकट हुई। यही कारण है कि इस दिन महालक्ष्मी एवं विष्णु का पूजन किया जाता है। इस दिन रात्रि में महालक्ष्मी रात्रि में विचरण करती हैं और जो जागकर माता रानी का ध्यान करता है, उनकी कामनाएँ पूरी होती हैं।
इस रात चंद्रमा के साथ अश्विनी कुमारों को भी खीर का भोग लगाने से लाभ होता है। ऐसा करते समय अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारी जो इन्द्रियां शिथिल हो गई हों, उनको पुष्ट करें। खीर का प्रसाद ग्रहण करने से पहले एक माला (108) या कम से कम 21 बार इस मन्त्र का जाप करें
ओम् नमो नारायणाय
इस के पश्चात् खीर का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए मान्यता है कि शरद् पूर्णिमा को रात्रि में बनी खीर को खाने से व्यक्ति की आयु, बल, तेज़ बढ़ता है तथा चेहरे पर कान्ति आने से शरीर स्वस्थ बना रहता है। पंडित सुमित पचौरी दिल्ली
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