मीडिया_और_बैंककर्मियों_को__भी_समझे_सरकार
वैश्विक महामारी कोरोना के चलते पूरे विश्व भर में हाहाकार मचा हुआ है । हिंदुस्तान में भी सरकार ने लॉकडाउन किया हुआ है इस लॉकडाउन में पत्रकारों ने अपनी जान जोखिम में डालकर दिन रात एक किया सरकार की बातों को अलग-अलग शहरों के हालातों को जन-जन तक पहुंचाया जागरूक किया और सफल लॉकडाउन के चलते आज कोरोना अपना पैर हिंदुस्तान में नहीं पसार सका ।
मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की बदले में देश के प्रधानसेवक और कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने उन्हें मीडिया को धन्यवाद ज्ञापित किया जोकि किसी भी पत्रकार व उनके परिजनों के पेट_भरने व उनकी स्थिति सुधारने के लिए पर्याप्त शब्द थे । एक ओर बैंककर्मी हैं जो लगातार पूरी इमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं । सरकार द्वारा जनधन खातों में ट्रांसफर किए गए पैसे को निकालने के लिए कतार में हजारों खड़े हैं वही दैनिक लेनदेन करने वाले भी बैंक जा रहे हैं सबका काम बैंककर्मियों द्वारा किया जा रहा है जहाँ अत्यधिक ख़तरा इस बात का है कि हर किस्म के लोंग बैंक पहुँच रहे है । लेकिन किसी भी नेता,मंत्री या देश की जनता को ना बैंककर्मियों की फिक्र हुई और ना हीं मीडियाकर्मियों की केवल स्वास्थ्य विभाग,पुलिस विभाग व सफ़ाई कर्मचारियों की जय जयकार हुई जबकि भूमिका सबने बराबर की निभाई ।
छत्तीसगढ़ की प्रदेश सरकार ने लगातार पत्रकारों द्वारा की जा रही आर्थिक पैकेज की मांग को नजरअंदाज किया क्योंकि शायद छत्तीसगढ़ सरकार की दृष्टि में पत्रकार इंसान है ही नहीं । वही प्रदेश सरकार द्वारा राजस्थान के कोटा शहर में अपना कैरियर तलाशने गए बच्चों को लाने के लिए जिस तत्परता से निर्णय लेकर 75 बसों के साथ पुलिस और मेडिकल स्टाफ भेजा है मैं सोचता हूं यह निर्णय सरासर गलत था केवल बच्चो को लाने की अनुमति प्रदान किया जाना था बच्चों के पेरेंट्स को अपने निजी वाहन या अन्य किसी साधन से उन बच्चों को वापस लेकर आएं या दूसरा रास्ता था कि सरकार ट्रेन के माध्यम से बच्चों को वापस लेकर आती.....आज सारी ट्रेनें पटरी पर अपने पहिए जाम कर खड़ी है क्या उन ट्रेनों का उपयोग नहीं किया जा सकता था ? एक सुरक्षित यात्रा वो भी कम खर्चे में होती और सोशल डिस्टेंसिंग का भरपूर पालन करते हुए ट्रेन में ज्यादा स्पेस मिलता और बच्चे सुरक्षित छत्तीसगढ़ आ जाते ।
इस तरह सरकार द्वारा लिया गया निर्णय और लगभग 95 वाहनों को कोटा राजस्थान भेजना जनता के पैसे का दुरुपयोग हैं । जिस तरह बिना सोचे समझे निर्णय लिए जा रहे हैं इससे सरकार की माली हालत और बिगड़ेगी अभी लॉकडाउन चल रहा है इसकी कोई गारंटी नहीं कि आने वाले समय में जल्द ही कोई सुधार होगा अनिश्चितता की स्थिति पूरे देश में बनी हुई हैं ।
इसलिए #सरकार को कोई भी निर्णय बहुत सोच समझ कर लेना चाहिए केवल #अव्वल रहने की राजनीति व #वाहवाही बटोरने के चलते कहीं लेने के देने न पड़ जाएं । दूसरा पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग,सफ़ाई कर्मचारियों के अलावा मीडियाकर्मी और बैंककर्मियों के बारे में भी सरकार को संवेदनशीलता से विचार करना चाहिए आखिर वे भी तो इंसान हैं।
वैश्विक महामारी कोरोना के चलते पूरे विश्व भर में हाहाकार मचा हुआ है । हिंदुस्तान में भी सरकार ने लॉकडाउन किया हुआ है इस लॉकडाउन में पत्रकारों ने अपनी जान जोखिम में डालकर दिन रात एक किया सरकार की बातों को अलग-अलग शहरों के हालातों को जन-जन तक पहुंचाया जागरूक किया और सफल लॉकडाउन के चलते आज कोरोना अपना पैर हिंदुस्तान में नहीं पसार सका ।
मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की बदले में देश के प्रधानसेवक और कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने उन्हें मीडिया को धन्यवाद ज्ञापित किया जोकि किसी भी पत्रकार व उनके परिजनों के पेट_भरने व उनकी स्थिति सुधारने के लिए पर्याप्त शब्द थे । एक ओर बैंककर्मी हैं जो लगातार पूरी इमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं । सरकार द्वारा जनधन खातों में ट्रांसफर किए गए पैसे को निकालने के लिए कतार में हजारों खड़े हैं वही दैनिक लेनदेन करने वाले भी बैंक जा रहे हैं सबका काम बैंककर्मियों द्वारा किया जा रहा है जहाँ अत्यधिक ख़तरा इस बात का है कि हर किस्म के लोंग बैंक पहुँच रहे है । लेकिन किसी भी नेता,मंत्री या देश की जनता को ना बैंककर्मियों की फिक्र हुई और ना हीं मीडियाकर्मियों की केवल स्वास्थ्य विभाग,पुलिस विभाग व सफ़ाई कर्मचारियों की जय जयकार हुई जबकि भूमिका सबने बराबर की निभाई ।
छत्तीसगढ़ की प्रदेश सरकार ने लगातार पत्रकारों द्वारा की जा रही आर्थिक पैकेज की मांग को नजरअंदाज किया क्योंकि शायद छत्तीसगढ़ सरकार की दृष्टि में पत्रकार इंसान है ही नहीं । वही प्रदेश सरकार द्वारा राजस्थान के कोटा शहर में अपना कैरियर तलाशने गए बच्चों को लाने के लिए जिस तत्परता से निर्णय लेकर 75 बसों के साथ पुलिस और मेडिकल स्टाफ भेजा है मैं सोचता हूं यह निर्णय सरासर गलत था केवल बच्चो को लाने की अनुमति प्रदान किया जाना था बच्चों के पेरेंट्स को अपने निजी वाहन या अन्य किसी साधन से उन बच्चों को वापस लेकर आएं या दूसरा रास्ता था कि सरकार ट्रेन के माध्यम से बच्चों को वापस लेकर आती.....आज सारी ट्रेनें पटरी पर अपने पहिए जाम कर खड़ी है क्या उन ट्रेनों का उपयोग नहीं किया जा सकता था ? एक सुरक्षित यात्रा वो भी कम खर्चे में होती और सोशल डिस्टेंसिंग का भरपूर पालन करते हुए ट्रेन में ज्यादा स्पेस मिलता और बच्चे सुरक्षित छत्तीसगढ़ आ जाते ।
इस तरह सरकार द्वारा लिया गया निर्णय और लगभग 95 वाहनों को कोटा राजस्थान भेजना जनता के पैसे का दुरुपयोग हैं । जिस तरह बिना सोचे समझे निर्णय लिए जा रहे हैं इससे सरकार की माली हालत और बिगड़ेगी अभी लॉकडाउन चल रहा है इसकी कोई गारंटी नहीं कि आने वाले समय में जल्द ही कोई सुधार होगा अनिश्चितता की स्थिति पूरे देश में बनी हुई हैं ।
इसलिए #सरकार को कोई भी निर्णय बहुत सोच समझ कर लेना चाहिए केवल #अव्वल रहने की राजनीति व #वाहवाही बटोरने के चलते कहीं लेने के देने न पड़ जाएं । दूसरा पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग,सफ़ाई कर्मचारियों के अलावा मीडियाकर्मी और बैंककर्मियों के बारे में भी सरकार को संवेदनशीलता से विचार करना चाहिए आखिर वे भी तो इंसान हैं।
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