अलवर में गौतम बुद्ध की जयंती व शोभायात्रा निकाली गई.
अलवर राजस्थान/जरनैलसिंह गोविन्दगढ भगवान गौतम बुद्ध को ना सिर्फ बौद्ध धर्म के बल्कि हिंदू धर्म के अनुयायी भी मानते हैं. भगवान गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ है. इस बार गौतम बुद्ध जयंती 16 मई यानी आज मनाई जा रही है.
आज अलवरवासियों ने भगवान गौतम बुद्ध की भव्य शोभायात्रा निकाली जिसका भक्तों ने जगह जगह स्वागत व पुष्पवर्षा की गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ। उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में बुद्ध को जन्म दिया।
कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था। उनका जन्म नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान नेपाल ही नहीं समूचे भारत में था। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माँ का देहांत हो गया था बुद्ध की शिक्षा-दीक्षा : वैसे तो सिद्धार्थ ने कई विद्वानों को अपना गुरु बनाया किंतु गुरु विश्वामित्र के पास उन्होंने वेद और उपनिषद् पढ़े, साथ ही राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता था।
बुद्ध का विवाह : शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का सोलह वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। यशोधरा से उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम राहुल रखा गया। बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुद्ध के भिक्षु हो गए थे।
वैराग्य भाव : बुद्ध के जन्म के बाद एक भविष्यवक्ता ने राजा शुद्धोदन से कहा था कि यह बालक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा, लेकिन यदि वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया तो इसे बुद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता और इसकी ख्याति समूचे संसार में अनंतकाल तक कायम रहेगी।
राजा शुद्धोदन सिद्धार्थ को चक्रवर्ती सम्राट बनते देखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने सिद्धार्थ के आस-पास भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया ताकि किसी भी प्रकार से वैराग्य उत्पन्न न हो। तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहां पर नाच-गाना और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उनकी सेवा में रख दिए गए, लेकिन...एक दिन वसंत ऋतु में सिद्धार्थ बगीचे की सैर करने निकले। रास्ते में सांसारिक दुःख देखकर विचलन हुआ और सब कुछ बदल गया।
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