कश्मीरी मजदूरों के वापस नहीं आने से हिमाचल की सैकड़ों स्कीमें प्रभावित हो रही हैं। यहां यह श्रमिक जल शक्ति विभाग में ठेकेदारों के पास काम करते रहे हैं। मार्च के बाद लॉकडाउन लगते ही यह हजारों श्रमिक अपने प्रदेश के लौट गए थे। बाद में अनलॉक के बाद आधे से भी कम मजदूर लौट पाए हैं। इससे जलशक्ति विभाग की कई योजनाओं का काम सुस्त पड़ा है। ठेकेदारों को स्थानीय श्रमिकों से ही काम चलाना पड़ रहा है। राज्य में हजारों कश्मीरी श्रमिक जलशक्ति विभाग के साथ काम करते रहे हैं।
इनका मुख्य काम पाइपें दबाने का रहा है। इस काम में इनकी विशेषज्ञता भी रही हैं। स्थानीय श्रमिक पहले तो उतनी संख्या में मिल ही नहीं पाते हैं। अगर मिल भी गए तो वे उस तरह से पाइपें दबाने के काम में प्रवीण नहीं होते हैं, जैसे कश्मीरी श्रमिक होते हैं। इसकी वजह यह है कि हजारों श्रमिक पिछले कई दशकों से यह काम करते रहे हैं। वर्तमान में ठेकेदारों को या तो नेपाली श्रमिकों से काम करवाना पड़ रहा है। वे अगर अनुपलब्ध हों तो उस स्थिति में स्थानीय श्रमिकों से काम लिया जा रहा है।
सूत्रों की मानें तो इससे करीब ढाई सौ से अधिक योजनाएं प्रभावित चल रही हैं। इनमें पीने के पानी और सिंचाई की स्कीमें हैं। शिमला जिला में ठियोग और कोटगढ़ क्षेत्र में काम करने वाले एक ठेकेदार ने कहा कि उन्होंने विशेष आग्रह करके ही कश्मीर से श्रमिकों को बुलाया है। इनमें से कुछ श्रमिक ही उनके पास आए हैं। कोरोना संक्रमण के कारण बहुत से ठेकेदारों को इन श्रमिकों को वापस बुलाना मुश्किल हो गया है। जल शक्ति विभाग के प्रमुख अभियंता नवीन पुरी का कहना है कि यह सही है कि कोरोना संक्रमण की वजह से पहले की तरह कश्मीर से मजदूर नहीं आ रहे हैं, पर स्थानीय श्रमिकों से काम चलाया जा रहा है। बहुत ज्यादा प्रभाव कहीं नहीं पड़ने दिया जा रहा है।
PRAGATI MEDIA HIMACHAL
REPORTER MUKESH BHIBORIA
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