जौनपुर _का _प्राचीन _इतिहास अब्दुल्ला तिवारी
जौनपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है. मध्यकाल में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर वाराणसी से 58 किमी. दूर है..
जौनपुर का अति प्राचीन इतिहास...
प्राचीनकाल में जौनपुर का नाम "यमदग्निपुर" था.
यमदग्निपुर नाम प्रसिद्ध महार्षि यमदग्नि के नाम पर पड़ा था जो अयोध्या के राजा दशरथ के समकालीन थे.
महार्षि यमदग्नि का राजा सहस्त्रार्जुन से मतभेद हो जाने पर वो दक्षिण दिशा की ओर चल पड़े और चलते-चलते जब गोमती नदी के पवित्र तट पर पहुंचे तो वहां के शांत और प्रकृति सौंदर्य देखकर मंत्र-मुग्ध हो गये.
यहीं पर उन्होंने अपना आश्रम बनाया और अपने पुत्र परशुराम के साथ यहीं रहने लगे.
परशुराम को भगवन विष्णु का छठवां अवतार माना जाता है..
आज भी जमैथा में यमदग्नि का मंदिर है.
इसीलिए जौनपुर को महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली कहा जाता है.
यह क्षेत्र उस समय "अयोध्यापुरम" नाम से जाना जाता था.
जो "काशीराज" में पड़ता था.
14वीं शताब्दी में फिरोज तुगलक का जौनपुर पर राज हो गया अध और उसी ने जौनपुर को पुनः स्थापित करने का कार्य किया..
उसने अपने चचेरे भाई जौना खां के नाम पर "यमदग्निपुर" का नाम "जौनपुर" कर दिया था..
1394 के आसपास मलिक सरवर ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य के रूप में स्थापित किया। शर्की शासक कला प्रेमी थे। उनके काल में यहां अनेक मकबरों, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण किया गया। यह शहर मुस्लिम संस्कृति और शिक्षा के केन्द्र के रूप में भी जाना जाता है। यहां की अनेक खूबसूरत इमारतें अपने अतीत की कहानियां कहती प्रतीत होती हैं। वर्तमान में यह शहर चमेली के तेल, मूली,तम्बाकू की पत्तियों, इमरती और स्वीटमीट के लिए लिए प्रसिद्ध है
जौनपुर का भूगोल..
जौनपुर जिला वाराणसी प्रभाग के उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित है। इसकी भूमिक्षेत्र २४.२४०N से २६.१२०N अक्षांश और ८२.७०E और ८३.५०E देशांतर के बीच फैली हुई है। गोमती और सई मुख्य पैतृक नदियों हैं। इनके अलावा, वरुण, पिली और मयुर आदि छोटी नदिया हैं। मिट्टी मुख्य रूप से रेतीले, चिकनी बलुई हैं। जौनपुर अक्सर बाढ़ की आपदा से प्रभावित रहता है। जौनपुर जिले मे खनिजों की कमी है। जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल 2०३८ किमी२ है..
जौनपुर के क्षेत्र..
शाहगंज,जौनपुर सदर, जफराबाद,मुंगराबादशाहपुर,केराकत,मछलीशहर,मल्हानी,बदलापुर,मड़ियाहूँ,
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मुख्य आकर्षण..
शाही पुल...
गोमती नदी पर बने इस खूबसूरत ब्रिज को मुनीम खान ने 1568 ई. में बनवाया था। शर्कीकाल में जौनपुर में अनेकों भव्य भवनों, मस्जिदों व मकबरों का र्निमाण हुआ। फिरोजशाह ने 1393 ई0 में अटाला मस्जिद की नींव डाली थी, लेकिन 1408 ई0 में इब्राहिम शाह ने पूरा किया.इब्राहिम शाह ने जामा मस्जिद एवं बड़ी मस्जिद का र्निमाण प्रारम्भ कराया, इसे हूसेन शाह ने पूरा किया। शिक्षा, संस्क़ृति, संगीत, कला और साहित्य के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले जनपद जौनपुर में हिन्दू- मुस्लिम साम्प्रदायिक सद् भाव का जो अनूठा स्वरूप शर्कीकाल में विद्यमान रहा है, उसकी गंध आज भी विद्यमान है।
शीतला चौकिया धाम...
यहां शीलता माता का लोकप्रिय प्राचीन मंदिर बना हुआ है। मन्दिर के साथ ही एक बहुत ही खूबसुरत तालाब भी है, श्रद्धालुओं का यहां नियमित आना-जाना लगा रहता है। यहाँ पर हर रोज लगभग ५००० से ७००० लोग आते हैं। नवरात्र के समय मे तो यहाँ बहुत ही भीड़ होती हैं। यहाँ बहुत दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिये आते हैं। यह हिन्दुओ का एक पवित्र मंदिर जहा हर श्रधालुओ की मनोकामना चौकिया माता पूरा करती है। शीतला चौकिया धाम
यमदाग्नी आश्रम...
यह आश्रम एक धार्मिक केन्द्र के रूप में विख्यात है। संत परशुराम से संबंध रखने वाला यह आश्रम आसपास के क्षेत्र से लोगों को आकर्षित करता है।
रामेश्वरम महादेव...
यह भगवान शिव का मंदिर राजेपुर त्रीमुहानी जो सई और गोमती के संगम पर बसा है। इसी संगम की वजह से इसका नाम त्रीमुहानी पड़ा है यह जौनपुर से 12 किलोमीटर दूर पूर्व की दिशा में सरकोनी बाजार से ३ किलोमीटर पर हैं और इस स्थान के विषय मे यह भी कहा जाता है की लंका विजय करने के बाद जब राम अयोध्या लौट रहे थे तब उस दौरान सई-गोमती संगम पे कार्तिक पुर्णिमा के दिन स्नान किया जिसका साक्ष्य वाल्मीकि रामायण में मिलता है "सई उतर गोमती नहाये , चौथे दिवस अवधपुर आये ॥ तब से कार्तिक पुर्णिमा के दिन प्रत्येक वर्ष मेला लगता है । त्रिमुहानी मेला संगम के तीनों छोर विजईपुर, उदपुर, राजेपुर पे लगता है दूर सुदूर से श्रद्धालु यहाँ स्नान ध्यान करने आते हैं । विजईपुर गाँव मे अष्टावक्र मुनि की तपोस्थली भी है और इसी विजईपुर गाँव मे ही 'नदिया के पार' फिल्म की शूटिंग हुई ।
अटाला मस्जिद..
अटाला मस्जिद का निर्माण कार्य १३७७ में शुरू हुआ था जो १४०८ में जाकर इब्राहिम शर्की के शासनकाल में पूरा हुआ। यह मस्जिद शर्की वास्तुशिल्प के प्रारंभिक और सबसे बेहतरीन उदाहरणों में एक है। मस्जिद की सबसे प्रमुख विशेषता इसके अग्रभाग में उठा हुआ प्रार्थना कक्ष है। मस्जिद के तीन तोरण द्वार हैं जिनमें सुंदर सजावट की गई है। बीच का तोरण द्वार सबसे ऊंचा है और इसकी लंबाई २३ मीटर है।
जामी मस्जिद..
जौनपुर की इस सबसे विशाल मस्जिद का निर्माण हुसैन शाह ने १४५८-७८ के बीच करवाया था। एक ऊंचे चबूतर पर बनी इस मस्जिद का आंगन ६६ मीटर और ६४.५ मीटर का है। प्रार्थना कक्ष के अंदरूनी हिस्से में एक ऊंचा और आकर्षक गुंबद बना हुआ है।
शाही किला...
शाही किला गोमती के बाएं किनारे पर शहर के दिल में स्थित है। शाही किला फिरोजशाह ने १३६२ ई. में बनाया था इस किले के भीतरी गेट की ऊचाई २६.५ फुट और चौड़ाई १६ फुट है। केंद्रीय फाटक ३६ फुट उचा है। इसके एक शीर्ष पर वहाँ एक विशाल गुंबद है। शाही किला मे कुछ आदि मेहराब रहते हैं जो अपने प्राचीन वैभव की कहानी बयान करते है।
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