लॉकडाउन ने मध्यम वर्गीय परिवार को बुरी तरह आहत किया है। मध्यम वर्गीय परिवार के लोगों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस आपदा की घड़ी में संपन्न परिवार को तो कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। गरीब परिवार के लोगों को शासन से तथा संपन्न परिवार व समाजसेवियों की ओर से मदद मिल जाती है।
उनके पास गरीबी रेखा का कार्ड होता है। जन धन खाता होता है। उसमें शासन की ओर से राशि डाली गई है। लेकिन मध्यम वर्ग के लोगों के द्वारा तो जो कार्य करते हैं ,उससे ही परिवार का गुजारा चलता है। इस कारण इस महामारी के कारण कई ऐसे मध्यम परिवार हैं। जिनके सामने काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। प्रायवेट संस्थानों में कम वेतन पर कार्य करने वाले, छोटी दुकान चलाने वाले, दुकानों पर मजदूरी करने वाले,फेरी लगाकर कमाने वाले,ऐसे ही अनेक स्थानों पर महिने के हिसाब से वेतन पर कार्य करने वालों की हालत काफी खराब है क्योंकि उनको पहले ही गिनी चुनी राशि में काम करना पड़ रहा है। इस कारण उनको जो राशि मिलती थी उसी से परिवार का पालन पोषण कि या जाता था। लेकिन अब तो अनेक संस्थानों में ताले लगे हुए हैं। इस कारण उनका ही काम धंधा बंद है तो फिर उनके यहां पर कार्य करने वालों को वेतन कहां से मिलेगा । मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले कई लोगों ने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए बताया कि हमारा दर्द सुनने जानने का कोई प्रयास नहीं करता। कहने पर कोई विश्वास नहीं करता। लॉकडाउन में कोई कर्ज भी नहीं देता। दुकानदार उधार देने की बजाय मुंह मोड़ लेता है। इन लोगों का कहना है सरकार द्वारा लॉकडाउन की अवधि अगर दोबारा बढ़ाई जाती है तो इन परिवारों की समस्या और विकराल बन जाएगी।
आशीष रावत
मध्यप्रदेश
उनके पास गरीबी रेखा का कार्ड होता है। जन धन खाता होता है। उसमें शासन की ओर से राशि डाली गई है। लेकिन मध्यम वर्ग के लोगों के द्वारा तो जो कार्य करते हैं ,उससे ही परिवार का गुजारा चलता है। इस कारण इस महामारी के कारण कई ऐसे मध्यम परिवार हैं। जिनके सामने काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। प्रायवेट संस्थानों में कम वेतन पर कार्य करने वाले, छोटी दुकान चलाने वाले, दुकानों पर मजदूरी करने वाले,फेरी लगाकर कमाने वाले,ऐसे ही अनेक स्थानों पर महिने के हिसाब से वेतन पर कार्य करने वालों की हालत काफी खराब है क्योंकि उनको पहले ही गिनी चुनी राशि में काम करना पड़ रहा है। इस कारण उनको जो राशि मिलती थी उसी से परिवार का पालन पोषण कि या जाता था। लेकिन अब तो अनेक संस्थानों में ताले लगे हुए हैं। इस कारण उनका ही काम धंधा बंद है तो फिर उनके यहां पर कार्य करने वालों को वेतन कहां से मिलेगा । मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले कई लोगों ने अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए बताया कि हमारा दर्द सुनने जानने का कोई प्रयास नहीं करता। कहने पर कोई विश्वास नहीं करता। लॉकडाउन में कोई कर्ज भी नहीं देता। दुकानदार उधार देने की बजाय मुंह मोड़ लेता है। इन लोगों का कहना है सरकार द्वारा लॉकडाउन की अवधि अगर दोबारा बढ़ाई जाती है तो इन परिवारों की समस्या और विकराल बन जाएगी।
आशीष रावत
मध्यप्रदेश
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